श्राद्ध पक्ष
तुमसे बिछुड कर जिंदगी उदास है
जाने क्यों फिर भी मिलने की आस है।
यूं तो लौटकर नहीं आते हैं जाने वाले
श्राद्ध पक्ष में लौटकर आओगे ये विश्वास है ।।
स्मृतियों की उषा की सांझ न हो कभी
मुझे अब उस किरण की तलाश है।
तुम्हारा इशारा है या मात्र आभास है
ऐसा लगता हैं पित्तृ यही आसपास है ।।
अनंत ज्योतिर्मय जीवन में जाने वाले
तुम्हारा साया मेरे जीवन का प्रकाश है ।
आस्था के दीप जलाए है जो पूर्वजों ने
सूने वीरान खंडहरों में भी उजास है।।
समर्पित है पूर्वजों के चरणों में श्रध्दासुमन
पूर्वजों की आराधना में लीन हर सांस हैं ।
कागराज द्वारा भोजन ग्रहण करना
पितृगण खुश होने का कराता आभास हैं ।।
— गोपाल कौशल “भोजवाल”