अठन्नी ईमानदारी
कटिहार शहीद चौक के पास एक होटल के बाहरी हिस्से के भूतल पर नितांत छोटा-सा किताब दुकान, किन्तु वहाँ जो भी पत्र-पत्रिकाएं और उपन्यासादि आपको चाहिए, वो निश्चितश: मिल जाएंगे ! इस दुकान पर बैठे हैं बतौर पुस्तक-विक्रेता यानी पान चबाते ललन भैया । वे कटिहार के पत्रकार बन्धुओं के अघोषित रिपोर्टर भी जरूर थे !
लगभग 20 वर्षों से मैं वहाँ विद्या के विविध विधाओं के कागजी रूप को खरीद रहा था । इधर दो-तीन माह से ललन भैया अचानक बीमार पड़ गए, दिल्ली में इलाज चल रहा था, परंतु इलाजरत भैया आखिरकार कल चल बसे!
एकबार मेरे पास ‘अठन्नी’ नहीं रहने के कारण उन्होंने मुझे अखबार तक नहीं दिए थे ! उस दिन तो मुझे उनका यह कृत्य अच्छा नहीं लगा था, किन्तु बाद में मुझे लगा…. ज़िन्दगी में स्पष्टवादिता व बेबाक़ीपन जरूरी है ! हालाँकि कुछ लोगों को बेबाक-उत्तर सुनना पसंद नहीं है, तथापि उनसे मेरा उनकी मृत्युपर्यंत साथ रहा! उनकी क्या उम्र होगी ? यही 60 या कुछ कम या कुछ बेसी! भरा-पूरा परिवार छोड़कर न जाने कहाँ चले गए भैया ?