ग़जल
जा, बे, जो करना था कर के देख लिया।
तेरा एक समन्दर तर के देख लिया।
चाँद सितारे दुश्मन बन कर ही निकले,
मुट्ठी भीतर सूरज धर के देख लिया,
सुन्दरता के भीतर कितनी कायरता,
जहर फनियर साँप् का जर के देख लिया।
फिर भी एक संतुष्टि की है भाल अभी,
मर के, जी के, जी के, मर के देख लिया।
वह निर्मोही फिर पत्थर का पत्थर है,
आँखों बीच समन्दर भर के देख लिया।
इतना प्यारा खेल, नतीजा कुछ भी नहीं,
जीवन हर के, जित के, हर के देख लिया।
पिघल-पिघल अहसास नदी का रूप बना,
पर्वत ऊपर बर्फ में ठर के देख लिया।
तू कमबख्ता दूरी का मोहताज रहा,
फिर भी तुझ को नजरे भर के देख लिया।
‘बालम’ गजलें, कविता, गीत, कहानी थे,
तेरा कमरा खाली कर के देख लिया।
— बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर