गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बैठकर आराम करने को जी चाहता है।
ठंडी छांव में शाम करने को जी चाहता है।।
आँखों में आँखें डालकर बात करते रहें।
जाम पीने पिलाने को जी चाहता है।।
डूबकर इसी दरिया मे भीग जायें हम।
साहिल तक साथ जाने को जी चाहता है।।
हाथ छूटे न कभी हमारा भँवर में भी।
सात जन्मों तक साथ आने को जी चाहता है।।
जिन्दगी की शाम हो जाये यूं चलते चलते।
बेसबब ही मर जाने को जी चाहता है।।
खुदा के दर पे सर अपना झुका देगें हम।
इश्क मुकम्मल कर जाने को जी चाहता है।।
जहाँ में इश्क ये पलता रहे बेपनाह।
नफरतें बारहा मिटाने को जी चाहता है।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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