ग़ज़ल
रहिए अब ऐसी जगह चिंता जहाँ कोई न हो
ख़ुशियों का भंडार हो दु:ख नाम का कोई न हो
अपने अपने काम में नित मग्न रहते हों सभी
आलस्य और प्रमाद का नामो निशाँ कोई न हो।
पालन करें कर्तव्य का परिवार के प्रति प्रेम से
बाल-बच्चों से दुःखी माता पिता कोई न हो ।
देशवासी हों सुरक्षित समाज में सुख-शान्ति हो
नाग विषधर देश में पलता हुआ कोई न हो ।
याद करते हों प्रभु को हर दिन परम सन्तोष से
प्रभु की सेवा के सिवा मनोकामना कोई न हो।
सब सुशिक्षित हों, सदा आचार का पालन करें
ज्ञानी ध्यानी हों सभी, “अंजान” सा कोई न हो।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल “अंजान”