क्या कसूर
क्या कसूर उन आँखों का
जिनकी चमक छीन ली जाती है
चमकने से पहले?
बुझा दिए जाते हैं वे दीप
जलने से पहले।
थोड़ी सी देर हुई थी
थोड़ा ही हुआ था अंधेरा
सूने रास्ते में पड़ गई थी अकेली…।
रोया था उसके पिता ने उस दिन भी
जब नन्हें पैरों चल गोद में आई
रो रहा है आज भी
जब उस नन्ही परी के
मिटते अस्तित्त्व की
देकर दुहाई।
बस फर्क थोड़ा सा उन आँसुओं में
इसलिये है क्योंकि
उस दिन तुने पिता बनाया
और आज पिता तुझे बचा न सका।
आज हर तरफ दुर्योधन हैं
उनका अट्टहास है तांडव है।
हे कृष्ण!
आ एक बार फिर
कलयुग में बन जा
सखा, मित्र और भाई
बाँधूगी राखी एक नहीं हज़ार
बचा ले आकर इस
कल्युग की द्रोपदी का संहार।
— पिंकी कुमारी राय