कविता

मन

मन धूप है,
मन छाया है,
मन माया है,
मन सरमाया है,
मन मणि है,
मन रत्न है,
मन प्रयास है,
मन प्रयत्न है,
मन अटकाता है,
मन भटकाता है,
मन संतोषी बनाता है,
मन लटकाता है,
मन संकीर्ण हुआ, तो बड़ा सुख भी छोटा,
मन विराट हुआ, तो छोटा सुख भी बड़ा,
मन सोया, तो मानव भी सोया,
मन उठ खड़ा हुआ, तो मानव भी आगे बढ़ा.
मन ही सब करवाता है,
मन ही भरमाता है,
मन ही सब बहलाता-फुसलाता है,
मन ही साहस देता-दिलाता है.
मन को महकाइए,
मन को लहकाइए,
मन को चहकाइए,
मन को प्यार से सहलाइए.
मन को अपना बनाइए,
सकारात्मक से सजाइए,
मन के गुलाम मत बनिए,
मन को अपने अनुरुप चलाइए.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244