संतृप्ति
इंसान मोह माया का दास
उसको जीवन में पाना प्यास.
वो बन चूका आदत का रास
उसको पाना हर बात ख़ास.
होता सौभाग्य कुछ का पास
जिनका रहता संतृप्ति हास.
चाहे मेहनत हो कब परिणाम
मन कितनी ज्वाला कब नाम.
मांगने से मन फूल लगे खिले
होता वहीं जो सोचा न मिले.
जीवन अतृप्त सी बढ़ती आशा
नहीं जानती संतृप्ति परिभाषा.
मधु तो सब यहां पीने आता,
है किसका हर्ष प्यालों नाता,
कोई काम न बन मदमाता,
भरी सपनों का मौन नाता.
ज़लती स्वप्नों की मैं ज्वाला
क्या यहीं है संतृप्ति से पाला.
— रेखा मोहन