कविता

संतृप्ति

इंसान मोह माया का दास
उसको जीवन में पाना प्यास.
वो बन चूका आदत का रास
उसको पाना हर बात ख़ास.
होता सौभाग्य कुछ का पास
जिनका रहता संतृप्ति हास.

चाहे मेहनत हो कब परिणाम
मन कितनी ज्वाला कब नाम.
मांगने से मन फूल लगे खिले
होता वहीं जो सोचा न मिले.
जीवन अतृप्त सी बढ़ती आशा
नहीं जानती संतृप्ति परिभाषा.

मधु तो सब यहां पीने आता,
है किसका हर्ष प्यालों नाता,
कोई काम न बन मदमाता,
भरी सपनों का मौन नाता.
ज़लती स्वप्नों की मैं ज्वाला
क्या यहीं है संतृप्ति से पाला.

— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]