पीड़ा
अंतस की पीड़ा समेट कर
जब कदम दो चार चला
अधरों पर मुस्कान ला
दिल को हर बार छला
न जाने कब आंखें बरसी
अश्रु गालों पर फिसला
किस किस को याद करूं
कौन देगा साथ भला
कभी ताना, कभी उलाहना
जुबाँ से कई बार जला
किससे शिकवा, किससे गिला
जब उनके बीच पला
जो नहीं थी बात मुझे पता
दूसरों को पहले पता चला
थोड़ी सी चैन सुकून मिले
जीवन तारिणी संग बह चला
मेरे शब्द मेरी पहचान बने
मन सागर सरीखा बन चला
वेदना नींव प्रणीत भविष्य
वर्तमान श्याम बह चला
अवचेतन मन की भावना
चेतन मन समझ चला
जीवन संग बहना है धीरे
सीखा चुप रहने की कला
बहुत सारी चाहतों को
वक्त के हवाले कर चला
वो वक्त आएगा, क्या पता
आगत संग बह चला