सिक्किम का शेरपा समुदाय
शेरपा समुदाय तिब्बती मूल के हैं I तिब्बती भाषा में ‘शेरपा’ का अर्थ “पूर्वी मनुष्य” है I नेपाल में शेरपा उसे कहा जाता है जो लोग तिब्बत के पूरब से आए थे I सिक्किम के चारों जिलों में शेरपा का निवास है I येलोग मांसाहारी होते हैं I आलू, चावल और गेहूं इनका मुख्य भोजन है I वे हरी सब्जियाँ, दूध, फल भी खाते हैं I वे गोमांस, अंडा और कंद- मूल खाते हैं I सर्द वातावरण में रहने के कारण इन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है I इसलिए वे उबले आलू, आलू ब्रेड, आटा और आलू का मिश्रण आदि खाद्य पदार्थ का अधिक सेवन करते हैं I वे छांग और अरक (मदिरा) का नियमित सेवन करते हैं I शेरपा एक पितृसत्तात्मक समाज है I पिता परिवार का मुखिया होता है I इस समाज में अधिकांश एकल परिवार पाए जाते हैं I पिता की मृत्यु के बाद पैतृक संपत्ति सभी पुत्रों के बीच बराबर भागों में बाँट दी जाती है जबकि माता के गहने बेटियों को दिए जाते हैं I इस समुदाय में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है I महिलाएं उद्यमशील होती हैं और वे परिवार पर नियंत्रण रखती हैं I सामान्यतः महिलाओं को संपत्ति नहीं दी जाती है, लेकिन पहला बच्चा होने के बाद पिता अपनी जमीन का एक टुकड़ा, बर्तन और सोने के कुछ गहने अपनी बेटियों को देते हैं I इस रिवाज को “लारू” कहा जाता है I महिलाएं खेती, पशुपालन एवं सामाजिक– धार्मिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं I इस समुदाय में गोत्र को “रू” कहा जाता है जो उनकी सामाजिक संरचना की आधारशिला है I सिक्किम के शेरपा को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है – i)शेरपा और ii)युकपा I फिर ये दोनों समूह कई गोत्रों में विभक्त हैं I गोत्रों के नाम हैं – शालाखा, फिनाशा, लामा शेरपा, चायबा, गोपरमा इत्यादि I इस समुदाय में समगोत्रीय विवाह प्रतिबंधित है I शेरपा समुदाय में विजातीय विवाह अर्थात गोत्र से बाहर विवाह होते हैं I अधिकांश विवाह बातचीत से तय होते हैं I इस समाज में पलायन विवाह भी प्रचलित है I पलायन विवाह की स्थिति में लड़के के घर पर “गेंगु किब्जा” का आयोजन किया जाता है I मुख्य विवाह को “गेनु” कहा जाता है I इस समुदाय में वधू मूल्य भुगतान की भी परंपरा है I वधू मूल्य का भुगतान नकद अथवा वस्तु के रूप में किया जाता है I इस समाज में एकविवाह की परंपरा है I पति– पत्नी के बीच सामंजस्य नहीं होने पर समाज द्वारा तलाक मान्य है I तलाक होने पर क्षतिपूर्ति राशि देने का कोई प्रावधान नहीं है I पति– पत्नी दोनों में से कोई एक बच्चों का उत्तरदायित्व ग्रहण करता है I विधवा, विधुर अथवा तलाकशुदा स्त्री– पुरुष को पुनर्विवाह करने का अधिकार है I विवाह के प्रथम चरण को ”सोदानी” कहते हैं I इस दिन लड़के के रिश्तेदार दो बोतल मदिरा (अरक) लेकर लड़की के घर जाते हैं एवं विवाह प्रस्ताव पर लड़की के माता – पिता की सहमति मांगते हैं I लड़की के माता – पिता की सहमति के बाद लड़के के माता – पिता को मदिरा, 20 किलोग्राम कोदो और सफ़ेद स्कार्फ दिया जाता है I एक दूसरा रिवाज भी प्रचलित है जिसमें वर पक्ष द्वारा लड़की के माता – पिता को 30 किलोग्राम बाजरा और खमीर दिया जाता है I विवाह में लामा (पुजारी) द्वारा “खालु पूजा” कराई जाती है I जब बारात लड़की के घर पहुँचती है तो उनका स्थानीय मदिरा (छांग) से स्वागत किया जाता है I शेरपा बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं I वे समर्पण भाव से भगवान बुद्ध और गुरु रिनपोचे की पूजा करते हैं I बौद्ध मठ (गोम्पा) इनके लिए सर्वाधिक पवित्र स्थान है I पुजारी (लामा) सभी प्रकार की पूजा, अनुष्ठान, संस्कार आदि संपन्न कराते हैं I इसलिए शेरपा समाज में इन्हें बहुत सम्मान दिया जाता है I शेरपा लोग अनेक पर्व– त्योहार मनाते हैं जिनमें प्रमुख हैं- गुरु रिमपोचे जयंती, पंग ल्हासोल त्योहार, सागादावा त्योहार, लोसूंग त्योहार, द्रुक्पा सेझी त्योहार, ल्हा– बाप– धूचेन त्योहार इत्यादि I