ग़ज़ल
मत दिखा आँखों को सपना ज़िंदगी
खो गया सारा ही मौका ज़िंदगी ।
जानती हूँ तेरे हर्बे मैं सभी
अब मुझे देना न धोखा ज़िंदगी।
ये हकीक़त भी सभी को है पता ,
इक नया हर दिन है पर्चा ज़िंदगी।
हर इबारत में वही है दास्ताँ,
इश्क़ से अश्कों का रिश्ता ज़िंदगी ।
झुक रहे सज़दे में सिर यूँ क्यों ‘किरण’
है कोई ग़म ही का साया ज़िंदगी।