अनकही बातें
कुछ तो कहना था तुमसे
मगर कह नहीं पाया
कभी अपनी घुटती हुई
दबी हुई आहों को।
कुछ तो लिखना था
किताबी पन्नों पर तुम्हारे बारे में,
मगर लिख न पाया कभी
उन शब्दों के जंजाल को।
कुछ तो सोचना था
बढ़ती हुई उमर के साथ
घटते हुए अपने जज्बातों को
मगर कभी सोच न पाया।
कुछ तो पाना था तुमसे
मोहब्बत के नाम पर सुकून को
मगर चाहकर भी कभी
इजहार न कर पाया कभी तुमसे।