गड़े मुर्दे
गड़े मुर्दे उखाड़ना
और फिर उसका सौदा करना
फैशन ही नहीं
लाभकारी धंधा भी है
इस धंधे में ख्याल बस
इतना रखना होता है कि
ये मुर्दे किसी किसान,मजदूर या
श्रमिक के न हो
क्योंकि जब इनके जीवन का ही
कोई मूल्य नहीं होता
तो फिर मरने के बाद इसे कौन खरीदेगा
गड़े मुर्दे किसी रसदार ,धब्बेदार, सेलिब्रिटी का
उखाड़ना मुफीद होता है
क्योंकि ये बिकते हैं ऊँचे दामों पर
हाथों हाथ ।
टी.भी.चैनलों पर तो एंकर
करते हैं इसका ऐसे चीरफाड़
कि इसके एक-एक टुकडे़ को लपकने के लिए
भिड़ जाते हैं बहस में भाग लेते लोग,
ठीक कुत्ते की तरह
मीडिया ले लेकर चटखारे
इसे ऐसे रसमय बनाती है कि
डूब जाती है इसकी रसधारा में
बाकी जरूरी खबरें
चाहे वह खबर
किसानों की आत्महत्या की हो
या शहर से गांव लौटे मजदूराें की
या फिर अन्य जनसरोकारों की
ऐसी खबरें हो जाती हैं अक्सर बेमानी
मुनाफाखोर नजरों में
फिर लांघ जाती है अंधी भौतिकता
वसूलों की लक्ष्मण रेखा
— डॉ रामबहादुर चौधरी चंदन