कविता

सच के लिफाफे में

सच  के लिफाफे में
झूठ भी छिपा है
कसमों और वादों की
बड़ी लम्बी सूची बनाई है
ज़रूरत पड़ने पर
एक-एक नाम कटते गए
यही भरपाई है
एक पेड़ का विकास
छोटे पौधों का नाश
ऐसे मे किसका विकास दिखा है
सच के लिफाफे में
झूठ भी छिपा है।
सबको साथ लेकर चलना है
काँटा ना चुभे
कुछ तो कुचलना है
दबे-कुचो की आवाज़
तेज ना हो जाए
मखमली चादर से ढकना है
रेशम की बुनाई में
एक जिन्दा मौत को
किसके कानों ने सुना है
सच के लिफाफे में
झूठ भी छिपा है।

— महिमा तिवारी

महिमा तिवारी

नवोदित गीतकार कवयित्री व शिक्षिका, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, प्रा0वि0- पोखर भिंडा नवीन, वि0ख0-रामपुर कारखाना, देवरिया,उ0प्र0