सजा के गीत होंठो पर
सजा के गीत होंठो पर गमों को भूल जाना है,
दीपक से नहीं तारों से जग को जगमगाना है।
सरलता से हृदय की सारी गांठे खोल देंगे हम,
शहद जैसे विचारों को सिंधु में घोल देंगें हम,
बनाकर क्षार कोअमृतकलश जन को पिलाना है।
सजा के गीत होंठो पर गमों को भूल जाना है।
नयनों के दीए रोशन खोजते दोष दूजे मन,
चतुरता की चादर से मूंदे मन का है कानन,
जलाशय स्वार्थ का बन भानु हमको सुखाना है।
सजा के गीत होंठो पर गमों को भूल जाना है।
साधु ने केंचुली छोड़ी निशा का तम नहीं छोड़ा,
बनावट के नीति नियमों ने पीछे मुंह नहीं मोड़ा,
सरसता भर के भावों में विहग सा चहचहाना है।
सजा के गीत होंठो पर गमों को भूल जाना है।
— सीमा मिश्रा