कविता

लोकतंत्र

हां सुना था मैंने भी कि अब,
भारत में आया लोकतंत्र।
दासता की बेड़ी टूट गईं,
हो गया आज जन-जन स्वतंत्र।
अब मुस्कुराएगा हर चेहरा,
होगा विकास अब मूल मंत्र।
है लोकतंत्र मैं तब मानूं,
जब जन-जन की सुनवाई हो,
ना सड़कों पर किसान उतरे,
हर ओर खुशहाली छाई हो।
भूख,गरीबी,बेरोजगारी,
कहीं देखने ना पाए,
धनी और निर्धन के बीच की,
सारी खाई पट जाए।
भ्रष्टाचार मुक्त हो भारत, 
हर आतंकी हमसे थर्राए,
हो नशा मुक्त भारत वासी,
नारी सम्मान से जी पाए।
अधिकार मूल सबको ही मिलें,
कर्तव्यों का भी पालन हो,
ना धर्म धर्म के नाम पे देश लड़े,
हर घर में स्व- अनुशासन हो।
नेता अपना हित ना साधे,
जनता हित सबसे ऊपर हो,
यह सब कुछ सच करने वाला,
शायद कोई जादूगर हो।
“जब यह सब कुछ सच हो पाए,
तब शायद लोकतंत्र आए।
हो लोक में लोक का लोकतंत्र,
हम लोकतंत्र के गुण गाएं।

— मीनेश चौहान “मीन”

मीनेश चौहान "मीन"

फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश)