मुक्तक/दोहा

काजल ( दोहे)

टीका काजल को लगा, लाल भाल चमकाय ।
बुरी नज़र से ढाँक ले,   माँ तो नेह लुटाय ।।
काजल सी कारी धरी, घनी अँधेरी रात ।
तारे टिम-टिम करत रे, आशा-दीप जलात ।।
अँखियन काजल डार कें, घर सें निकरी नार ।
द्वित-सो चमके गौर-मुख,  देत क़रेज़ा काट ।।
काजल सो मनवा करें,   अब तो कर लो साफ़ ।
सच को दीप जलाय लो ,  प्रभु कर देहें माफ़ ।।
का-जल को अब हाल रे, काजल दियो बनाय ।
धौन-धान सब डार कें, नाश करत ही जाय ।।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।