क्या अब विधानसभा में भी नमाज पढ़ी जाएगी ?
यह प्रश्न देश के लोकतंत्र पर एक बड़ा हमला ही है, परन्तु इस विषय को स्वयं को लोकतंत्र का रक्षक जताने वाले नही उठाएंगे। जी हां संविधान को मुस्लिम तुष्टिकरण का रंग देते हुए झारखंड की विधानसभा ने यह निर्णय लिया है। झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो के आदेश से विधानसभा के नए भवन के अंदर कक्ष 348 को नमाज के लिए आवंटित कर दिया गया। 2 सितंबर 2021 को भारत के इतिहास में यह ऐसी पहली घटना घटी है जिसने भारतीय लोकतंत्र पर कालिख पोतने का काम किया। क्या विधानसभा में नमाज पड़वा कर झारखंड की राजनीति स्वयं को मुस्लिम परस्त साबित नहीं कर रही ? यदि ऐसा है तो क्या विधानसभा में एक एक कक्ष हर समुदाय को दिया जाएगा ? क्या सिख समुदाय का गुरुद्वारा व अन्य पंथों व संतो के अनुयायी जैन, बौद्ध, रविदासी, वाल्मीकि, आर्यसमाजी ऐसे अनगिनत विचारों को मानने वाले लोगों के लिए अलग अलग कक्ष आवंटित किए जाएंगे ? यह निर्णय खुले रुप में वोट बैंक की राजनीति के कलुषित चेहरे को दर्शाता है। झारखंड जोकि भौगोलिक सामाजिक व सांस्कृतिक रूप में भारत के अन्य राज्यों से भिन्नता रखता है, यहां रहने वाले जनजाति समाज पर पहले ही ईसाई मशीनरी के द्वारा धर्मांतरण का षड्यंत्र सत्ता पक्ष के समर्थन से अनवरत जारी है, इतना ही नहीं सरकार किसी की भी हो ईसाई मशीनरी का धर्मांतरण का काम कभी नहीं रुका। लेकिन झारखंड विधानसभा के इस निर्णय का विरोध भाजपा के अतिरिक्त किसी राजनीतिक पार्टी ने नहीं किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस और राजद गठबंधन की सरकार होने के कारण ना तो राहुल गांधी ने इस घटना पर आपत्ति ली, ना प्रियंका गांधी ने कोई ट्वीट किया, ना ही केजरीवाल ने कोई बयान दिया और ना ममता बनर्जी ही इस विषय में कुछ बोली । क्योंकि यह सभी लोग कहीं न कहीं मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति का समर्थन करने वाले लोग हैं, मुस्लिम समाज को वोट बैंक के रूप में किस तरह उपयोग करना यह काम दशकों से इन पार्टी व इस मानसिकता के लोगों ने किया है। हम जानते हैं कि किसी भी राज्य की विधानसभा उस राज्य के लोकतंत्र के एक मंदिर का प्रतिबिंब होती है जहां समाज के लिए नीति निर्धारण, कानून व्यवस्था, समाज के उत्थान के विषय के लिए चिंतन किया जाता है, कानून बनाए जाते हैं, यदि देश की विधानसभा ही इस तरह के निर्णय करने लगेगी तो आखिर लोकतंत्र का किस प्रकार का स्वरूप हम भविष्य में आने वाली पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करेंगे ? क्या यह समाज व देश को एक साम्प्रदायिक युद्ध की ओर ले जाने का प्रयास नही है ? इस निर्णय का जितना हो सके उतना विरोध करना चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो हर संस्था, हर बिल्डिंग, हर बैंक, हर अस्पताल, आप कहाँ कहाँ नमाज पढ़ने के लिए जगह बांटेगे ? क्या इसके बाद चिलम लगाने और लॉडस्पीकर से नमाज पढ़ने की अनुमति देने का आदेश जारी होगा ? फिर तो हर सरकारी कार्यालय और भवन में नमाज के कमरा ही मस्जिद बन जायेगा। जिसे आप बदलने की सोच भी नही सकते, वरना लोकतंत्र खतरे में आ जायेगा। क्या मजहबी विषयो में ऐसे निर्णय सही मान सकते है, देश का बहु संख्यक समाज झारखंड विधानसभा के इस निर्णय का विरोध करता है। हम ऐसे किसी भी प्रयास को सफल नही होने देंगे जो देश व समाज को फिर से तुष्टिकरण और विभाजन की ओर ले जाये। ऐसे सभी तत्वों, राजनीतिक पार्टियों, व्यक्तियों को सबक सिखाने के लिए मुखर होकर बोलना होगा। हो सकता है यह विषय समाचार न बने, परन्तु आज सोशल मीडिया अपनी आवाज बुलंद करने का एक माध्यम है, सामाजिक संगठनों व देशभक्त समाज को इसके विरोध में आगे आकर विभाजनकारी शक्तियों को मुंह तोड़ जवाब देना चाहिए।
— मंगलेश सोनी