कविता

अगर चाँद न होता नभ में

अगर चाँद न होता नभ में
बच्चों का प्यारा चन्दा मामा
और चन्द्र खिलौना बनता कौन
घंटों लुका छिपी कर बादलों संग
घूंघट की ओट मुस्काता कौन

नित छत पर मिल अपने मन के सुख दुःख
सुनता और सुनाता कौन
राह भूले को राह दिखाने
पथ में चांदनी बिखराता कौन

गगन थाल में तारों के बिच
नृप सम ठाठ दिखाता कौन
साथ-साथ चल घुमक्कड़ों के
दुनिया की सैर कराता कौन

दुर्बल भी न होते कमतर
उनमें भी शक्ति समाहित है
ग्रहण लगाकर सूरज को
ताकत का अहसास कराता कौन

शान्त झील में जब पड़े कंकड़ी
जल की लहरों संग इठलाता कौन
उपमा सुन्दरता की बन काव्यों में
मधुर श्रृंगार रस बरसाता कौन

कभी ये घटता कभी बढ़ जाता
जीवन में सुख दुःख आता जाता
अंधियारा तो अस्थायी दौर है
जीवन का ये पाठ पढ़ाता कौन

है नहीं कोई परिपूर्ण जगत में
फिर क्यों गुमान रूप रंग धन का
पूर्ण चांद में भी दाग है
आईना जग को दिखलाता कौन

धारित होकर शिव ललाट पर
विष का ताप घटाता कौन
कर अमृत वर्षा शरद चाँदनी में
संसार को सुखी बनाता कौन
— सुधा अग्रवाल

सुधा अग्रवाल

गृहिणी, पलावा, मुम्बई