लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 25)
पांडवों की योजना के अनुसार त्रयोदशी के दिन महारानी कुंती ने ब्राह्मण भोज का आयोजन किया। उन्होंने अपने निर्देशन में सेवकों से भोजन तैयार कराया और ब्राह्मणों को भोजन कराया। भोजन करने के लिए देर शाम तक ब्राह्मण और अन्य वर्णों के निर्धन लोग आते रहे। कुंती ने बड़े मनोयोग से सबको भोजन कराया। सुरंग खोदने वाला श्रमिक भी भोजन करने वालों के साथ मिलकर चुपचाप महल से निकल गया।
तभी संयोग से एक भीलनी या निषाद जाति की स्त्री अपने पाँच पुत्रों के साथ भोजन करने आयी। वे सभी मदिरा के नशे में धुत थे। इसको सुखद संयोग समझकर भीम ने उनको और अधिक मदिरा पिलायी और छककर भोजन कराया। इससे वे निद्रा में निढाल हो गये और वहीं सो गये। भीम ने उनको उठाकर अपने निवास के कक्षों में लिटा दिया। अब सभी पांडव निश्चिंत थे।
जब अर्द्ध रात्रि बीत गयी और पुरोचन भी अपने कमरे में प्रगाढ़ निद्रा में सो रहा था, तो भीम ने चुपके से जाकर उसके कक्ष को बाहर से बन्द कर दिया। फिर माता कुंती सहित सभी पांडव सुरंग में घुस गये। सबसे अन्त में भीम शिव भवन में आग लगाकर सुरंग में घुसे। उन्होंने सुरंग के मुँह के ऊपर कुछ सामान इस तरह रख दिया था कि जलने के बाद उसकी राख से सुरंग का मुँह बन्द हो जाये और छिप जाये। इससे किसी को पता नहीं चल सकता था कि यहाँ कोई सुरंग है।
भवन ने शीघ्र ही आग पकड़ ली क्योंकि वह बहुत ज्वलनशील पदार्थों से बना हुआ था। पुरोचन का कक्ष भी जलने लगा। जब तक पुरोचन नींद से उठता और बचने का कोई उद्योग करता, तब तक आग पूरे भवन को अपनी चपेट में ले चुकी थी। पुरोचन ने अपने कक्ष का दरवाजा खोलने की कोशिश की, परन्तु असफल रहा, क्योंकि वह बाहर से बन्द था। वह समझ गया कि पांडवों ने बाहर से दरवाजा बन्द करके आग लगा दी है और वे बचकर भाग गये होंगे। अब वह कुछ कर नहीं सकता था, इससे वह असहाय होकर अपने कक्ष के भीतर ही जलकर मर गया।
इधर पांडव सुरंग से बाहर निकल रहे थे। सुरंग अधिक ऊँची नहीं थी, बस इतनी ही थी कि एक साधारण व्यक्ति झुककर चल सके। भीम को तो बहुत अधिक झुकना पड़ रहा था। फिर भी वे जल्दी ही सुरंग से होकर शिव भवन के बाहर निकल आये, क्योंकि सुरंग अधिक लम्बी नहीं थी। बाहर आकर उन्होंने शान्ति की गहरी साँस ली, क्योंकि सुरंग में प्राणवायु कम थी और उनको श्वास लेने में कठिनाई हो रही थी।
भवन से बाहर निकलकर अँधेरे में छिपकर पांडवों ने देखा कि पूरे भवन को सब ओर से आग ने घेर लिया है। भवन को जलता देखकर नगरवासी भयभीत होकर आग बुझाने का असफल प्रयास कर रहे थे। वे समझ गये कि पुरोचन बाहर नहीं निकल सका है। यह सोचकर उन्होंने सन्तोष की साँस ली। फिर वे वन में घुस गये और गंगा नदी की ओर जाने वाली दिशा में आगे बढ़े।
इधर वारणावत नगर के वासियों ने सारा महल जल गया जानकर बहुत शोक किया। उन्होंने समझा कि पांडव भी अपनी माता के साथ जलकर मर गये होंगे। इससे उन्होंने बहुत विलाप किया और धृतराष्ट्र की बहुत निन्दा की। उन्होंने सोचा कि कौरवों ने गुप्त रूप से इसमें आग लगवा दी है, जिससे भवन का रखवाला पुरोचन भी जलकर मर गया है।
प्रातः होते ही उन्होंने सन्देशवाहक भेजकर हस्तिनापुर को ‘शिव भवन’ में आग लग जाने और माता कुंती सहित पांडवों के जलकर मर जाने का समाचार भेज दिया। उन्होंने यह भी बताया था कि भवन के अवशेष में सात शव मिले हैं, जो एक तो पुरोचन का है, जो मुख्य द्वार के निकट मिला है और शेष पांडवों तथा माता कुंती के हैं, जो महल के भीतरी भाग में मिले हैं। सन्देश में धृतराष्ट्र की निन्दा भी की गयी थी कि तुमने पांडवों की हत्या करायी है और अब तुम सुखी हो जाओ।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल
एक नई शै में लेखन..
विजया दशमी की सपरिवार शुभमंगलकामनाएँ❤🙏