ग़ज़ल
ज़िन्दगी के निशान आँखों में।
एक पूरा जहान आँखों में।
वक़्त-बेवक़्त बोलती हैं ये,
है छुपी इक ज़ुबान आँखों में।
क़त्ल का कर लिया इरादा तो,
तान तीरो-कमान आँखों में।
ठीक है, उम्र का तक़ाज़ा है,
शोख़ियाँ हैं जवान आँखों में।
बस रपट ही नहीं लिखी जाती,
है नशे की दुकान आँखों में।
आपका भी यक़ीन कर लेंगे,
लाइए तो ईमान आँखों में।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’