राजनीतिक गुरुज्ञान
श्री मनोज अभिज्ञान का कहना है कि यह सोचना मूर्खता होगी कि आने वाली हर पीढ़ी बाबा साहब का अंधानुकरण ही करें या मान्यवर कांशीराम के मार्ग पर ही चले! समाज के विकास की सतत प्रक्रिया होती है, इसलिए नए तथ्यों के आलोक में हमेशा नई रणनीति के साथ ही कुछ नया करना पड़ता है।
बाबा साहब ने महामना ज्योतिबा फुले को अपना गुरु माना, लेकिन फुले के आर्य आक्रमण सिद्धांत को नकार दिए । मान्यवर कांशीराम ने बाबा साहब को आदर्श बनाया, लेकिन उनसे हटकर जातियों के उच्छेद जैसे दुरूह कार्य को हाथ नहीं लगाया।
इसी तरह आने वालीं पीढ़ियाँ हमेशा कुछ न कुछ नया करती रहेंगी, इसलिए यह सोचना कि हमारे फलां महापुरुष ने तो यह कहा था करने को या वो कहा था करने को…. ये सारी बातें आपको लकीर का फ़क़ीर बनाता है । अपने महापुरुषों से सीख लेते हुए समय के साथ खुद को परिवर्तित करते हुए निरंतर नए रास्तों की तलाश कीजिए ।यही सही तरीका होता है ।
श्री राजीव कुमार भारद्वाज कहते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को इन तथ्यों पर संज्ञान लेना चाहिए कि कैसे सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों एवं अन्य प्रकार के जनप्रतिनिधियों की कमाई व संपत्तियां सिर्फ एक कार्यकाल व 5 वर्षों में 80% तक बढ़ जाती है, जबकि वेतन व भत्ते उनकी कमाई व आय के स्रोत नहीं है, यह सिर्फ जीविकोपार्जन हेतु है!
यह सवाल कोई विपक्षी पार्टी भी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वह भी तो जनता के पैसों के लूट में शामिल हैं। बारी-बारी से दोनों ही लूटा करेंगे। अन्यथा, जनता की नियति ‘विडम्बना’ बनी रहेगी !