लघुकथा – रणचंडी
अपनी माँ के साथ वह गई थी मंदिर, दुर्गा माँ की पूजा करने। महिषासुर मर्दिनी के स्वरूप को देखकर उसके अंदर चंडी जन्म ले चुकी थी।
रात में हमेशा की तरह ज्यों ही गाँव का वह दबंग उसके घर में घुसा उसने दारू पिलाकर उसे बेहोश कर दिया।
“जय माँ दुर्गे!” नर -असुर! तुम्हारी दारू और मेरी भुजाली, काम तमाम! दबंग का बेसिर धड़ छटपटा रहा था।
माँ ने अपनी जवान बेटी के रौद्र रूप को देखा और लाश को ठिकाने लगाने की सोचने लगी।
— निर्मल कुमार डे