लघुकथा

अहंकार

सभी विकास करने के इच्छुक होते हैं. मानव ने भी विकास की सीढ़ी पर बराबर पैर बढ़ाया.

अमूमन विकास के साथ अहंकार भी बढ़ता जाता है.
चार पैर वाला मानव सीधा होते-होते डिजिटल होता गया.
विकास करते-करते वह करोड़पति भी बन गया.

”मैंने रोशनी के लिए बिजली का आविष्कार किया है. अब गैस, वाशिंग मशीन, डिश वाशर, ब्रेड बेकर, तरह-तरह की मिक्सियां सब बिजली से चलेंगी. पानी की सप्लाई भी बिजली से ही होगी.” अहंकारी का अहं बोल रहा था.

”अचानक गैस पर सिकती रोटी नहीं सिक पाई, वाशिंग मशीन ठप्प, डिश वाशर की बोलती बंद, ब्रेड बेकर जहां-का-तहां, तरह-तरह की मिक्सियां चुप, पानी की सप्लाई ने मुख मोड़ लिया.”

”यह क्या हुआ? न मोबाइल चल रहा है, न इंटरनेट! रात का घना अंधकार है, रोशनी कहां गई? पंखे भी नहीं चलेंगे. इतनी गर्मी में रात को कैसे और कहां सोएंगे?” सदैव ए.सी. के साये में उठने-बैठने-सोने वाला करोड़पति चिंतातुर था.

उस रात उस करोड़पति को कार में ही रात गुजारनी पड़ी थी. कार में कुछ बिस्कुट मिल गए, वही खाए. अहंकार ने रूप बदल लिया था. वह चोटी से नीचे गिर गया.

”तो क्या यह अहम मात्र वहम या भ्रम था?” उसने खुद से सवाल किया.

उसका अहम भी टूट गया और वहम भी.

”अब वह अहम और वहम से रिश्ता तोड़ देगा”. अहंकार से मुख मोड़कर उसने मन में ठान लिया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244