भावुक स्मरण
पाठकों से नम्र निवेदन है कि वे इंटरनेट संस्करण व स्मार्टफोन की आभासी दुनिया से बाहर निकल मुद्रित पुस्तकों व पत्रिकाओं को खरीदने में रुचि दिखाएँ, जिनसे ये विक्रेता बंधु भी मुदित व प्रफुल्लित होते रहें !
बिहार के कटिहार ज़िले में प्रिंट किताबों और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री साफ खत्म-सी हो गई है । मनिहारी अनुमंडल में तो यानी यहाँ किसी भी पुस्तक दुकानों में समसामयिकी पुस्तकें व पत्रिकाएँ नियमित आती ही नहीं, क्योंकि यहाँ अधिकतम पाठक मुफ़्त में पढ़ने के आदी हैं । बुद्धिजीवी मित्रो को यह सत्य अवश्य ही करुआ लगेंगे, लेकिन यथार्थ तो यही है।
कटिहार जंक्शन के प्लेटफार्म नं. 1 पर (पहले RMS वाले प्लेटफार्म पर) AHW बुक शॉप कई दशकों से चर्चित रहा है, बड़े-बड़े साहित्यकारों ने यहाँ से पुस्तकें व पत्रिकाएँ खरीदते रहे हैं, किन्तु अब प्रिंट पुस्तकों व पत्रिकाओं की बिक्री नहीं होने पर उस जगह भुजिया-गुझियां बिकने लगी हैं।
इस शॉप के ऑनर श्री राजीव रंजन राय ने जब पुस्तक पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद (शोध); लव इन डार्विन (नाट्य पटकथा) उपहारस्वरूप प्राप्त किये, तो उनकी पीड़ा आँसू रूप में ढुलक पड़े!