हिंदुत्व की ताकत
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य हिन्दुत्व की ओर उन्मुख होता दिखाई देता है। उत्तर प्रदेश में चार महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। विपक्षी दलों ने योगी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए मोर्चा खोल रखा है। जिसके चलते अपने आपको सेक्लुयर कहलाने वाली विपक्षी पार्टियां भी इस बार खुलकर ‘मुस्लिम कार्ड’ खेलने से परहेज कर रही हैं। प्रियंका गांधी तो मंच पर बाबा विश्वनाथ के चंदन के साथ हुंकार भरती दिखीं। भाषण की शुरुआत के पहले दुर्गा सप्तशती के मंत्र उच्चारण से उन्होंने लोगों को जता दिया कि उनके हिंदू होने की प्रतिबद्धता को कम ना समझा जाए। वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव की चुनावी जनसभाओं में और सपा के पोस्टर में अभी तक मुस्लिम टोपी में नेता नजर आते थे। इस बार सपा नेताओं की तस्वीर हो या खुद नेता मौजूद हो मुस्लिम प्रतीक वाली जाली टोपी में नजर नहीं आते।
वर्तमान स्थिति में सभी राजनीतिक दलों की अब एक ही अपेक्षा है कि काश हमे भी लोग हिन्दू कहने लगे। हम भी हिन्दू हैं, हम भी जनेऊधारी ब्राह्मण हैं , हम भी तिलक लगाते हैं, हम भी मन्दिर-मन्दिर दर्शन करने जाते हैं, हम भी गायत्री मंत्र का जप करते हैं आदि – आदि सब प्रकार से अपने को हिन्दू साबित करने में लगे हैं और इस सब ढोंग का कारण सिर्फ एक है कि किसी तरह सत्ता प्राप्त हो और इसलिए वह सभी राजनीतिक दल जो कभी श्रीराम काल्पनिक हैं का हलफनामा कोर्ट में दाखिल करते थे, जो रामसेतु को तोड़ने का कुचक्र रचते थे, जो रामभक्तों पर गोलियां चवाते हैं, जो पेरियार को भगवान बनाते थे, जो धर्मनिरपेक्ष की वकालत करते थे आज वे सभी कांग्रेस, सपा, बसपा, आप, तृणमूल इत्यादि पार्टियां हिन्दू का नाटक रचकर, भेष बदलकर मन्दिर- मन्दिर घूम रहे हैं हिंदुओं का वोट पाने के चक्कर में। हिंदुत्व कोई वोट बैंक नही है कि आओ हिन्दुत्व का नाटक करो और वोट पा जाओ। यह सब हिन्दू समाज समझ चुका है कि हिन्दू कौन है और ढोंगी कौन है।
हिन्दू समाज के लिये हर्ष है कि यह जो सब आज हिन्दू बनने की होड़ में हैं तो कहीं न कहीं हमारी संगठित शक्ति का परिणाम है कि आज सभी लोग हमें पाने के लिये लालायित हैं। और अब वीर सावरकर की वह भविष्य वाणी भी सच हो रही है कि “यदि हिन्दू समाज संगठित हो गया तो सारे राजनेता कोट के ऊपर जनेऊ पहनना शुरू कर देंगे” आज वह दिखाई भी पड़ रहा है। अतैव इस लिये वर्तमान स्थिति को भली भांति समझकर हिन्दू समाज को अपना निर्णय लेना होगा। कि वास्तविक हिन्दू कौन है हमारा वास्तविक हित चिंतक कौन है यह सूक्ष्मता से ध्यान रखना होगा। मैं कुछ बयानों के उदाहरण देता हूँ कि ये भूतकाल में किस प्रकार के हिन्दू थे, 2004 में सोनिया गांधी ने कांची कामकोटि के शंकराचार्य को गिरफ्तार कराया। 2006 में मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। 2008 में समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने हिंदू आंतकवाद पर उंगली उठाई। 2016-17 में राहुल गांधी जेएनयू जाते हैं और वहां देश विरोधी नारे लगते हैं।
16 मई 2017 को कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम की तुलना तीन तलाक और हलाला से करते हैं। 17 मई 2017 यूथ कांग्रेस के एक नेता केरल में गाय की हत्या करते हैं और सार्वजनिक रूप से गौ मांस की भक्षण करते हैं। 9 जुलाई 2018 को कांग्रेस के जेड ए खान कहते हैं कि देश के हर जिले में शरिया कोर्ट की वकालत होनी चाहिए। 11 जुलाई 2018 को राहुल गांधी ने साफ कहा कि हां कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। उसी प्रकार मुलायम सिंह यादव कहते थे कि सपा केवल मुसलमानों की सरकार है, मुख्यमंत्री आवास में रोजाइफ्तार कराने वाले अखिलेश यादव हैं और अब हिन्दू बनकर जगह-जगह नाटक कर रहे हैं। ये सब वोट पाने के चक्कर मे तमाम बहुरूपिया हिन्दू बनने का ढोंग रचकर मेनका के समान कालनेमि रूप में मिल जाएंगे उनको पहचान कर खदेड़ने की आवश्यकता कब है इसको समझना होगा। यह समय संस्कृति के उत्थान का समय है, अपनी खोई हुई विरासत को वापस लाने का समय है इसलिए सभी हिन्दू जन को मिलकर एक दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है इन बहरूपियों से दूरी बनाकर अपने यथेष्ठ को प्राप्त करने की दिशा में सार्थक प्रयास हों यही अपना लक्ष्य हो।