उपन्यास अंश

लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 28)

इधर दुर्योधन ने पांडवों के लिए शोक करने का दिखावा तो किया, किन्तु उसे पूरी तरह विश्वास नहीं हुआ कि पांडव वास्तव में जलकर मर गये होंगे। इस पर विचार करने के लिए शकुनि, दुर्योधन, कर्ण और दुःशासन की आपस में गुप्त चर्चा हुई।
दुर्योधन बोला- ”मामाश्री! मुझे विश्वास नहीं होता कि पांडव वास्तव में जलकर मर गये होंगे। कहीं यह हमें धोखे में रखने की कोई चाल तो नहीं है?“

”तुम्हारा सन्देह पूरी तरह उचित है। आग लगाने के लिए चतुर्दशी की रात्रि का समय नियत किया गया था, जबकि आग त्रयोदशी को ही लगा दी गयी। योजना में ऐसा परिवर्तन पुरोचन अपने मन से नहीं कर सकता था। यही सन्देह करने का पर्याप्त कारण है।“

दुःशासन ने कहा- ”यदि आग पुरोचन ने लगायी होती, तो वह स्वयं क्यों जल जाता? इससे यही पता चलता है कि आग उसने नहीं लगायी थी और किसी अन्य ने लगायी थी। सम्भव है कि पांडवों को किसी तरह इस योजना का पता चल गया हो और वे एक दिन पूर्व ही भवन में आग लगाकर चुपचाप निकल भागे हों।“

”तुम्हारी कहना सही है, भागिनेय! पुरोचन ने आग लगायी होती, तो वह वापस अवश्य आता। हमने उसे बहुत पुरस्कार देने का वचन दिया था। वह वापस नहीं आया, इससे लगता है कि वह स्वयं भी जलकर मर गया है। उसके कक्ष के निकट जो शव मिला है वह अवश्य ही उसी का होगा।“

“लेकिन मामाश्री! भवन के भीतरी भाग में जो छः शव मिले हैं वे पांडवों के नहीं तो किसके हैं? उनमें से एक शव के कंकाल का आकार छोटा है। वह अवश्य कुंती का हो सकता है। शेष पाँच शव पांडवों के होंगे।“ यह दुर्योधन का कथन था।

”यह पूरी तरह सम्भव है युवराज! लेकिन शंका का सबसे बड़ा कारण यह है कि जले हुए महल में जो शव पाये गये हैं उनमें भीम के आकार का कोई नहीं है। यह कैसे सम्भव है कि जलने पर किसी व्यक्ति का आकार छोटा हो जाये?“

अब कर्ण बोला- ”आप सही कहते हैं मामाश्री! यह सन्देह का सबसे बड़ा कारण है। निश्चय ही पांडव किसी तरह बचकर निकल गये हैं।“

”तो वे शव किसके हैं जो महल में पाये गये हैं? जाँच अधिकारी ने पता किया है कि नगर में से कोई निवासी लुप्त नहीं हुआ है।“ दुःशासन फिर बोला।

”ऐसा लगता है कि पांडवों ने धोखे से कोई छः व्यक्ति कहीं से बुलाकर भवन में टिका दिये थे और स्वयं बाहर से आग लगाकर निकल भागे हैं।“ दुर्योधन ने कहा।

”अवश्य ही ऐसा ही हुआ है। पांडवों को किसी ने इस योजना की सूचना दे दी होगी और वे एक दिन पहले ही बचकर भाग निकले हैं।“ शकुनि ने निष्कर्ष रूप में कहा।

”ऐसा व्यक्ति कौन हो सकता है? यह पुरोचन तो हो नहीं सकता, क्योंकि वह मेरा बहुत विश्वस्त था। पुरोचन के अतिरिक्त किसी अन्य को इस योजना की भनक भी नहीं होगी।“

शकुनि ने कहा- ”कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि विदुर के किसी गुप्तचर ने वहाँ भवन को बनते हुए देख लिया हो कि इसमें ज्वलनशील पदार्थ मिलाये जा रहे हैं। इससे उन्हें इस योजना की गन्ध मिल गयी होगी और उन्होंने बचने का उपाय कर लिया होगा।“

”यह पूरी तरह सम्भव है। लेकिन प्रश्न यह है कि यदि पांडव बचकर भाग गये हैं तो वे कहाँ जा सकते हैं? आस-पास के सभी क्षेत्र हमारे अधिकार में हैं। रातभर में वे उस क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकते। यदि क्षेत्र में ही कहीं होंगे तो अवश्य पहचान लिये जायेंगे। फिर हम उनको समाप्त कर देंगे।“

”युवराज! हम इसकी खुली जाँच भी नहीं करा सकते, नहीं तो सभी को हमारे ऊपर सन्देह पक्का हो जाएगा। इसलिए हमें चारों ओर अपने गुप्तचर भेजकर पांडवों का पता लगाना चाहिए। वे सब एक साथ ही होंगे और कुंती भी उनके साथ ही होगी, इसलिए वे गुप्तचरों की दृष्टि से बच नहीं सकते।“

”ठीक है, मामाश्री! ऐसा ही करता हूँ। मैं आज ही अपने गुप्तचर सभी ओर भेज देता हूँ। तब तक कहीं भी इस बात की चर्चा नहीं करनी चाहिए कि पांडव बचकर निकल गये हैं। यदि नागरिकों में यह बात फैल गयी, तो उनमें विद्रोह हो सकता है।“
यह निश्चय करने के बाद उनकी चर्चा समाप्त हुई।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]