ग़ज़ल
करें रौशनी अब अँधेरा मिटायें।
दिलों में बसा है जो रावन जलायें।
गुनाहों की रोटी न हरगिज खिलायें।
अगर हो सके पाक रोज़ी कमायें।
मुहब्बत की दुश्मन अगर हों जलायें।
रसूमात बेकार की सब हटायें।
करीब अपने आने न दें नफरतों को,
दिये अब मुहब्बत का हर सू जलायें।
उनींदे नहीं काम होने सफल कुछ,
अगर नींद में है तो बच्चे जगायें।
— हमीद कानपुरी