मैंने देखा है
कभी हरे भरे थे जो
उन शाखों के पत्तो को सूखते हुए देखा है।
कच्ची नींद में आए
उन अधूरे सपनों को टूटते हुए देखा हैl
कुछ शीशों के टुकड़े बटोरते हुए
जीवन की कश्मकश से जूझते हुए देखा है।
कितनी अनकही बातों से
सवालों के जवाब बूझते हुए देखा है।
उस छूटे दामन को
दिल की वीरानियों में ढूढ़ते हुए देखा है।
जब साथ निभाने का वक्त था तब
उन रिश्ते नातों को रूठते हुए देखा है।
उन चहकती, चमकीली आँखों को
अपनी पलके मूंदते हुए देखा है।
~रूना लखनवी