मैं फूल हूँ
मिट्टी चाहे कैसी भी हो
पौधा बन कर निकल आता हूँ
कीचड़ में भी पंकज बन कर
मुस्कुराने की हिम्मत करता हूँ
फूलों का राजा मैं गुलाब
काँटो में भी जीना जानता हूँ
लाख ठोंकरे दे ये जमाना
मुस्कुरा कर जीने की संदेशा देता हूँ
वन उपवन में हैं मेरा आशियाना
माली मेरा अभिभावक है
दुर्गंध चाहे कैसी भी हो
सुंगध बरबस फैलाता हूँ
कोई रोक नहीं सकता जग में
मेरे अंदर की खुशबू
कोई बहका नहीं सकता है
मेरे कुदरती की खुशबू
देवों के सर पर चढ़ता हूँ मैं
फिर भी नहीं इठलाता हूँ
शव के साथ जल जाने पर भी
कभी नहीं घबराता हूँ
बेली चमेली जूही रातरानी
सब मेरे परिवार हैं
वन उपवन और चमन में
आना ये मेरा ही धाम है
— उदय किशोर साह