कविता

करवा चौथ व्रत

चांद से दूर  होती  है कब  चांदनी
राग से दूर  होती  है कब  रागिनी
ये तो जन्म  जन्मान्तर का मेल है
ना केवल  इसी  जनम का मेल है।
सारे व्रत हैं  बस नारियों  के  लिए
कुछ  बने हैं  सुकुमारियों  के लिए
कोई व्रत नहीं  बना  पति  के लिए
जो करता  हो पति पत्नी के लिए।
पुरुष सत्तात्मकता का यही कायदा
होता वही जिसमें पुरुष का फायदा
जो लिखा है उसमें उसी का फायदा
जो लिखा है वो भूल गया है कायदा
क्यों पत्नि ही व्रत करे पति के लिए,
क्यौं  पति ना  करे  पत्नि  के  लिए
क्या पत्नि पे कोई विपदा आतीनहीं
 या अमर है वो जग से जाती  नहीं।
 समर्पण  का उसके  न लो फायदा
पूरा करो जो फेरों में  किया वायदा
नारी को कब तक समझोगे अबला
अब तो उसे  बन  जाने दो  सबला।
व्रत  करो तो  तन  मन  अर्पित  रहे
एक  दूजे के  लिए  ही समर्पित रहे
सम्बन्धों में धोखा का नहो  कायदा
इससे  व्रत का  होता नहीं  फायदा।
— महेन्द्र सिंह  “राज”

महेन्द्र सिंह "राज"

मैढीं चन्दौली उ. प्र. M-9986058503