सामाजिक

धर्मांधता से कब बाहर निकलेगा समाज

क्यूँ पढ़े लिखे लोग भी तथाकथित बाबाओं के बहकावे में आ जाते है? क्यूँ ये नहीं सोचते की नियति ने जो लिखा होगा आपके भाग्य में वो होकर रहेगा। ज़िंदगी परेशानी और तकलीफ़ों का नाम है। तकलीफ़ से घबरा कर ज्योतिष और बाबाओं के शरण में जाकर झूठे विधि विधान में पड़कर ऐसे पाखंडियों को बढ़ावा देते हो जिनको खुद अपने भविष्य का पता नहीं होता। ऐसे लोगों के लिए धर्मं के नाम पर डराकर धर्म को बेचना बहुत ही आसान काम होता है। इंसान चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, मानसिक तौर पर हंमेशा एक डर से घिरा होता है। ज़िंदगी हादसों का सफ़र है?ज़रा सी तकलीफ़ आई नहीं कि इंसान घबरा जाता है। और इसी डर का फ़ायदा उठाते धर्म की दुकान खोलकर जो बैठे होते है उनका काम बन जाता है।
दो हाथ, दो पैर, एक सर वाला इंसान बाबा नाम धारण करते ही महान बन जाता है। गले में रुद्राक्ष की माला पहन लेते है, सर पर तिलक लगा लेते है और शास्त्रों में लिखी चार बातें प्रवचन के तौर पर जाड़ देते है, और ऐसे पंडितों के चरणों में लोग हाथ जोड़कर दंडवत करते लेट जाते है। भगवान का डर दिखाकर, ग्रहों का खौफ़ दिखाकर और दान पुण्य का महत्व समझाते लोगों को लूटना बहुत आसान होता है। इन बाबाओं का पूरा नेटवर्क रहता है, ढ़ेर सारे अनुयायी बनाकर मार्केटिंग करके बड़े-बड़े व्यापारीयों और बिज़नेस मैंनों को फांसते पैसों का जुगाड़ करते है। और आम इंसानों को हिप्नोटाइज़ करके लूटते है।
एक जानी मानी धार्मिक संस्था के साधुओं का यही काम है भक्तों से भगवान के नाम पर पैसे एंठना, लोग शरीर पर पहने सोने के गहने तक उतारकर भेंट धर देते है। गरीब से गरीब भी अपनी रोज़ की कमाई से भगवान के नाम पर हिस्सा निकालकर भेंट चढ़ाते है। और भक्तों के ही पैसे भक्तों को ब्याज पर देते है। संस्था की 5 स्टार होटेल जैसी अस्पताल है पर जिनके पैसों से बनी है अस्पताल बिमार होने पर उनसे ही तीन गुने पैसे वसूले जाते है।
और हद तो तब होती है, एक पंथ के बारे में तो ऐसा सुना है की जब बेटे की शादी होती है तो पहली रात महाराज श्री बहू के साथ बिताकर प्रसादी की बनाते है उसके बाद बेटे का संसार शुरू होता है। अनुयायी महाराज श्री के चरण धोकर पीते है और जेब में हाथ डालकर जितनी राशि होती है महाराज श्री के चरणों में अर्पण कर देते है। हमारे देश में धर्मांधता इतनी फूली फली है की तथाकथित बाबाएं और महाराज करोड़ पति बन गए है।
ज़रा सोचिए जो महाराज बनकर रामकथा, शिव कथा या भागवत कथा पढ़ते है, और बड़ी-बड़ी बातें बोलकर उपदेश देते है वह महाराज, पंडित, बाबा या ज्योतिष आप और हम जैसे इंसान ही है। आसमान से स्पेशल उपर वाले ने नहीं भेजे। जैसे नौकरी, धंधा करके हम हमारा घर चलते है, वैसे कथा करना उनका काम या नौकरी है, जिससे उसका घर चलता है। वह लोग भी आम इंसान ही है कोई महान या ईश्वर के स्वरुप नहीं। ऐसे लोगों के चरणों में हाथ जोड़कर दंडवत करते लेट जाने का मतलब क्या है। साक्षात राम, कृष्ण और शिव जी के चरणों में झुककर उनके आशीर्वाद क्यूँ न लें। और पुण्य ही कमाना है तो गरीब, भूखे और जरूरत मंदों की मदद करके क्यूँ न कमाएं खुद ईश्वर भी राजी होंगे।
एक धर्म की बात नहीं सारे धर्म अब कमर्शियल बन गए है। किसी भी बड़े मंदिरों में जाओ अब वीआईपी दर्शन की सुविधा मिलेगी, दर्शन के लिए वीआईपी की अलग लाईन रहती है। कहीं पर एक व्यक्ति के तीन सौ तो कहीं पर पाँच सौ वसूले जाते है। और प्रसाद की क्वालिटी भी बदल जाती है। इससे तो बेहतर है अपने घर के मंदिर में स्थापित मूर्ति के दर्शन कर लें। खर्वो रुपये हर मंदिर की तिजोरियों में सड़ रहे है। बंद करो ये दान पुण्य के नाम पर धार्मिक संस्थाओं की तिजोरियां भरना, समाज में बहुत सारे जरूरत मंद होते है उसे ढूँढ कर सहाय करो, भूखों को रोटी खिलाओ उनके मुँह से जो दुआ निकलेगी आपको आबाद कर देगी।भगवान कभी कुछ नहीं मांगते, भगवान के नाम पर, धर्म के नाम पर ऐसे धर्म के ठेकेदार ही अपनी दुकान चलाने के लिए लोगों को डरा कर लूटते है। ऐसे ढोंगी बाबाओं की बातों में आकर समय, पैसे और नैतिकता का पतन करना सरासर बेवकूफ़ी है।
कहने का मतलब है खुद पर, ईश्वर पर और अपने कर्मों पर अटल विश्वास रखिए ऐसे पाखंडियों के बहकावे में न आईये, जब तक हम ऐसे लोगों की मानसिकता पोषते रहेंगे इनकी दुकान राजधानी एक्सप्रेस की गति से चलती रहेगी और डरे हुए भक्तों की जेब हल्की होती रहेगी।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर