मुक्तक
( 1 )
तू आदमी था कोई या कि देवता कोई
सही-सही नहीं मिलता तेरा पता कोई
था ‘रामकृष्ण परमहंस’ ‘शान्त’ तू ही तो
अगर ये झूठ है तो मुझको रोकता कोई
( 2 )
तू सच ही कहता था सच पर अमल भी करता था
तमाम उलझे सवालों को हल भी करता था
जिन्हें न बान्ध सके लोग ‘शान्त’ जीवन भर
तू ऐसे शब्दों को छू कर गज़ल भी करता था
( 3 )
तू चाहता था कि तू बार-बार आये यहाँ
बिछङगये हैं जो खुदसेउन्हेंमिलाएयहाँ
तुझेपताथा कि ईश्वर है दीन-दुखियों में
उन्हीं के गीत तभी तूने गुनगुनाए यहाँ
( 4 )
जहाँन डर हो वहीं पर तो प्रीत पनपेगी
खुशीभीहोगी वहीं’शान्त’शान्तिजन्मेगी
शिकागो में जो गूंजे थे शब्द स्वामी के
उन्हीं की खुशबू से जन्मभूमि महकेगी
( 5 )
तू जबनहींथायहाँ तबभीतू यहीं पर था
तेरी नजर में हर इक दर्द मन्द ईश्वर था
कि राम कृष्ण समाये थे तेरी श्वासों में
उन्हीं के चरणों में तेरा बसा हुआघरथा
( 6 )
जो राह तूने दिखाई थी नेक सच्ची थी
जोतूनेदीथीहरइकसीख’शान्त’अच्छीथी
तूनेक मां कीतरह प्यार ही लुटाता रहा
ये और बातयेदुनिया अबोध बच्ची थी
( 7 )
नदियों का संगम देख चुके , ये मिलन महा – सागर का है !
हर सिजदा जिसको नमन करे , ये नमन महा – सागर का है !!
गंगा,यमुना,कृष्णा-कावेरी , जिसको अर्ध्य चढ़ाती हैं ;
अन्तस में इनको भर ले , ये चलन महा-सागर का है !!