कविता

सागरों का मिलन

ये सागरों का मिलन !
ये सूर्योदय का दृश्य !!
ये मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ ,
ये प्राकृतिक सौन्दर्य को-
निहारते लोगों का हुजूम !
सूर्यास्त के समय सनसेट – प्वाइंट पर,
टकटकी लगाये बैठे हुए लोग !!
रोमान्चित करने वाला एक-एक पल,
महसूस करने वाले दृश्य को;
शब्दों में कैसे बान्धा जाय !!
महात्मा- गाँधी के अवसान पर ,
जहाँ उनकी अस्थियां समन्दर में ,
विसर्जन से पूर्व रखी गई थीं,
वह स्मारक आज भी गाँधी जी की,
उन पंक्तियों को दोहराता प्रतीत होता है-

जो तीन महासागरों के मिलन के,
अद्भुत दृश्य को देखने के पश्चात,
उनके श्री मुख से अनायास ही,
निकल पड़ी थी-
स्वामी विवेकानंद जी ने जो संकल्प;
विवेकानंद शिला पर बैठकर लिया;
और जिसकी पूर्ति , अवर्णनीय कष्ट-
उठाकर अमेरिका एवं इन्गलैण्ड की,
ये घटनायें-
हृदय- पटल पर हमेशा के लिए-
अंकित होकर अंततः रह गयीं !!
क्यों कि इन्हें
कविता में बान्ध पाना भी असंभव है !!

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ