गीतिका
मौका पाकर जहर दे गये ,क्यों पाले थे नाग ?
मुझे हमेशा रही जलाती पछतावे की आग ।
अगर सो गया तो रहजन,मौका पा जायेंगे ,
सुस्ताने का समय नही है ,जाग मुसाफिर जाग!
दरबारियों कवियों को जिनमें नेता दिखते हैं,
मुझे श्वेत खादी में उनकी दिखे लहू के दाग ।
शुक,चातक,मैना,मयूर,कोयल,निर्वासित हैं,
जबसे बगुले आए,तबसे सूख रहा है बाग ।
लाशें गिरती ,वो खुश होते ,हलचल सी होती,
मुर्दाखोर सियासत वाले, हैं ये उजले काग ।
——— © डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी