बाल कविता

प्रेम-तराना

(बाल काव्यमय कथा)

एक वन में रहा करते थे,
इक बंदर और इक हाथी,
दोनों को था घमंड गुणों का,
नहीं बने इक दूजे के साथी.
हाथी की तो शक्ति अपार थी,
इक झटके में वृक्ष उखाड़ता,
फुर्तीला बंदर पूरा दिन,
उछलकूद पेड़ों पे मचाता.
हाथी कहता मैं ही बड़ा हूं,
बंदर खुद को बड़ा बताता,
उल्लू ने देखा लड़ते जब,
सोचा दोनों को सबक सिखाना.
खुद को बड़ा बताने से तो,
बनती कोई बात नहीं,
जो जीते वो ही तो बड़ा है,
लड़ना तो कोई बात नहीं.
”बोलो क्या करना है हमको,
अगले जंगल में तुम जाओ,
एक पेड़ पर फल सोने का,
उस फल को तुम लेकर आओ”.
जो जल्दी से फल लाएगा,
बड़ा वही बस कहलाएगा,
हाथी बोला ”मैं लाता हूं”,
बंदर बोला वह लाएगा.
बंदर ने फुर्ती दिखलाई,
पेड़ उखाड़ता हाथी भागा,
आई नदी, तो बंदर कूदा,
देखा न उसने पीछा-आगा.
उसे डूबते देखा गज ने,
उठा सूंड से उसको बचाया,
बंदर ने आभार जताया,
हाथी ने पीठ पे उसको बिठाया.
पार हुए थे अब वे दोनों,
सोने का फल भी ढूंढ निकाला,
बंदर झट से चढ़ा पेड़ पर,
फल ले हाथी को पकड़ाया.
नदी पार कर दोनों आए,
उल्लू को वह फल दिखलाया,
लगा नतीजा उल्लू बताने,
दोनों ने उसको चुप करवाया.
”कहीं बड़ा यह कहीं बड़ा मैं,
सीख गए हम हिलमिल रहना,
सबसे बड़ा है प्रेम-तराना,
गाकर आनंद का फल चखना”.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244