गीत/नवगीत

आज विरहिणी तुझे पुकारे

आज विरहिणी तुझे पुकारे, कहाँ गया मेरा यार
रूठ गयी माथे की बिंदिया, कहाँ खो गया प्यार?

तुम संग जो मन एक हुआ था, आज हुआ एकाकी
नहीं रहा अब कुछ भी मेरा, सिर्फ दर्द ही बाकी
आज ढूँढती उन सपनों को, जो देखे थे हमने
एक वीरानी सी बिखरी है, बची नहीं कोई झाँकी
यह संसार लगे धोखे का, फूल लगे अंगार
आज विरहिणी तुझे पुकारे, कहाँ गया मेरा यार।1।

अब कैसे पथ तेरा देखूँ, जब तू पथ में भूला
भूल गयी सब सपन सलोने, भूली सावन झूला
तेरा रुठना तेरी शरारत, रोज़ मुझे तरसाती
बहुत सताती है वह चितवन, तू रहता था फूला
तुझ बिन मनवा लगे कहीं ना, साँस लगे धिक्कार
आज विरहिणी तुझे पुकारे, कहाँ गया मेरा यार।2।

भँवर बड़े हैं लहरें ऊँची, काल बनी हैं रातें
उमड़-घुमड़ कर मेघ डराते, डसती हैं बरसातें
दूर-दूर तक फैला सागर, पवन बनी विकराल
आसमान से गिर-गिर बिजली, रुक-रुक करती घाँतें
रोग लगा ये जीवन भर का, नहीं बचे उपचार
आज विरहिणी तुझे पुकारे, कहाँ गया मेरा यार।1।

— शरद सुनेरी
24/10/21