गीत/नवगीत

इक दूजे के हित ही बने हैं,

इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो  या फिर नारी है।
संघर्ष में ना समय नष्ट कर, प्रेम से खिली फुलवारी है।

इक-दूजे के दिल में समाओ।
इक-दूजे पर प्रेम लुटाओ।
इक-दूजे बिन रह नहीं सकते,
इक होकर के भेद मिटाओ।
हाथ थाम दोनों, साथ चलो जब, देखे दुनिया सारी है।
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो  या फिर नारी है।।

अलग अलग क्यों रहे अधूरे।
मिलकर दोनों हो जाओ पूरे,
इक-दूजे के विपरीत चलकर,
हो जाओगे, तुम, दोनों  घूरे।
प्रेम में कोई माँग न होती, प्रेम के बनो न व्यापारी है।
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो  या फिर नारी है।

प्रेम खेल मिल साथ में खेलो।
कष्टों को मिलकर के ठेलो
दुनिया जो कहती है कह ले,
साथ में रह वियोग ना झेलो।
साथ-साथ चल कर्म करो, सजाओ जीवन क्यारी है।
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो  या फिर नारी है।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)