खट्ठा-मीठा : गाँधी का चौथा बन्दर
गाँधी के तीनों बन्दर लम्बे समय से एक ही स्थिति में रहते हुए बहुत परेशान हो गये थे। एक दिन उन्होंने आपस में सलाह की कि अब हमें अपनी भूमिकायें बदल लेनी चाहिए। इसके फलस्वरूप जिस बन्दर ने अपना मुँह बन्द कर रखा था, उसने आँखें बन्द कर लीं, जिसने आँख बन्दें कर रखी थीं, उसने कान बन्द कर लिये और जिसने कान बन्द कर रखे थे, उसने अपना मुँह बन्द कर लिया।
कुछ दिनों तक तीनों इसी स्थिति में रहे। फिर उन्हें लगा कि इससे तो किसी को कोई अन्तर नहीं पड़ा। यह तो वही बात हुई। तीनों पहले भी एक ही स्थिति में रहते थे और अब भी एक ही स्थिति में रहते हैं।
फिर तीनों ने आपस में तय किया कि हमें एक-दूसरे के अंग बन्द करने चाहिए। इसके फलस्वरूप जिसने अपना मुँह बन्द कर रखा था, उसने दूसरे का मुँह दबा लिया, जिसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थीं, उसने किसी और की आँखें बन्द कर दीं और जिसने अपने कान बन्द कर रखे थे, उसने तीसरे के कान दबा लिये।
तीनों कुछ दिन तक इसी स्थिति में रहे, परन्तु जल्दी ही सब परेशान हो गये। कहने लगे कि हमें इससे भी कोई अन्तर नहीं पड़ा, उल्टे हमारे हाथों में दर्द और होने लग गया है। लिहाजा तीनों फिर अपनी पुरानी स्थिति में आ गये।
कुछ दिन इस स्थिति में रहने के बाद तीनों फिर परेशान हो गये और अपनी भूमिका बदलने के बारे में विचार करने लगे। तब एक ने सुझाव दिया कि क्यों न हम तीनों की भूमिका किसी एक ही बन्दर को दे दें। इससे कम से कम दो बन्दर तो इससे मुक्त हो जायेंगे। यह विचार सबको पसन्द आ गया। लेकिन अब उनमें सलाह होने लगी कि उनमें से किसको सबकी भूमिका दी जाये। कोई भी स्वयं यह भूमिका लेने को तैयार नहीं हुआ, क्योंकि सब इस भूमिका से मुक्त होना चाहते थे।
अन्त में उन्होंने तय किया कि किसी चौथे बन्दर को तीनों भूमिकायें दे देनी चाहिए। यह तय होते ही तीनों तनावमुक्त हो गये और एक ऐसे बन्दर की खोज में लग गये जो गाँधी का बन्दर बनना चाहता हो। कोशिश करने पर तीनों को ऐसा बन्दर मिल गया। तब तीनों ने उसके मुँह पर टेप चिपका दिया, आँखों पर पट्टी बाँध दी और कानों में रुई ठूँस दी।
ऐसा करके जब उन्होंने उस चौथे थ्री-इन-वन बन्दर को देखा तो तीनों खुश हो गये। उनमें से एक ने कहा कि अब हमें इसका कोई नाम भी रख देना चाहिए। कई नामों पर तीनों ने बहुत गहराई से विचार किया और अन्त में उसका नाम रखा – ‘मनमोहन सिंह’।
यह चौथा बन्दर अपनी भूमिका से खुश है। उसे बोलने, देखने और सुनने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन करने के लिए दोनों हाथ आजाद हैं। उन हाथों से वह मनचाहे काम करता है। बुरा काम करने में कोई बुराई भी नहीं है, क्योंकि गाँधी ने केवल यह कहा था कि ‘बुरा मत कहो, बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो।’ उन्होंने कभी भी यह नहीं कहा कि ‘बुरा मत करो।’ इसलिए चौथा बन्दर परम संतुष्ट है और गाँधी को रोज याद करता और धन्यवाद देता है।