गीत – सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है
तेरी लट से ही तो रात चुराई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
मौसम तेरे साँसों से ही बनते हैं।
दिन और रात तेरे नयनों से चलते हैं।
फूल खिले हैं पत्तों की शहनाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
जब तू शबनम ऊपर रूक-रूक चलती है।
धूप सुनहरी कैसे कैसे ढलती है।
शांत समुन्दर में जितनी गहराई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
मीठी बाणी तेरे लब की उल्फ़त है।
चांद सितारों की जग में शोहरत है।
कृतज्ञता में अम्वर की ऊँचाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
झील किनारे चन्द्रमा का मेला है।
खेवनहारा किश्ती साथ अकेला है।
हुस्न तिरे की एैसी राहनुमाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
लेकर भव्य अलौकिक श्रृंगार खुदाने।
उस में डाला अतंरंग मनुहार खुदाने।
तेरी चाहत से ही प्रीत बनाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
चौरासी लाख जून में एैसा होता है।
कोई हँसता है तो कोई रोता है।
’बालम‘ तेरी उल्फ़त का शौदाई है।
सूरज तेरे मुखड़े का अनुयाई है।
— बलविन्दर ’बालम‘ गुरदासपुर