नजर
”आज फिर 25 अक्तूबर का दिन है!” लैपटॉप पर नजर डालते ही सुनयना मधु की यादों में खो गई.
”वह 25 अक्तूबर का दिन ही तो था! मधु स्कूल से अन्य सह अध्यापिकाओं के साथ बस से घर वापिस आ रही थी. स्टॉप आने पर बाकी अध्यापिकाएं तो सुरक्षित उतर गईं, मधु!” वह सुबकने लगी.
”उसके लंबे हॉफ स्लीव्ज़ स्वेटर का एक कोना बस के पायदान में अटक गया. मधु उतर भी नहीं पाई कि बस के चल पड़ने से वह गिर पड़ी, बस के पीछे का पहिया उसके ऊपर से—!” आगे वह सोच भी नहीं पाई.
”उसी ने ही तो सरला आंटी को फोन करके उनकी बहू की दुर्घटना के बारे में बताया था!” उसे याद आया.
”जब मधु मेरी एक सहेली के चरण स्पर्श करती थी, तो वह अपनी आदत के मुताबिक उसे ”आयुष्मान्, बुद्धिमान्, सेवामान्” कहकर आशीर्वाद देती थी. कुछ दिन पहले ही मैंने उसे कहा था- ”काश मैं भी तुझ से बहुत छोटी होती, मैं तेरे चरण स्पर्श करती और तू मुझे ऐसे अप्रतिम आशीर्वाद से नवाजती.” तेरहवीं के दिन सरला आंटी कहते-कहते रो पड़ी थीं, ”बस, उसके बाद न मधु मेरी सहेली से मिल पाई, न ही ”आयुष्मान्, बुद्धिमान्, सेवामान्” का आशीर्वाद ले पाई.” सरला आंटी की आंखों से इतने दिनों की रुकी अश्रुधार बह निकली थी- ”लगता है मेरी नजर ही मधु को खा गई!” उच्चशिक्षित सरला आंटी के मुंह से बरबस निकल गया.