पी एम यानी पी से प्रमोद एम से महाजन
30 अक्टूबर 1949 को महबूबनगर (महाराष्ट्र) में प्रमोद महाजन जी का जन्म हुआ। उन्होंने एम ए (राजनीति शास्त्र) की शिक्षा प्राप्त की । वे बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए। संघ में उन्होंने अनेक दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। उनके जीवन में संघ का काफी प्रभाव पड़ा । शाखा में सहज ही ग्रहण किए गए राष्ट्रप्रेम, संस्कार और अनुशासन का निष्ठापूर्वक जीवनभर पालन किया। इसके पश्चात वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य बने । राजनीति में उनका पदार्पण भारतीय जनसंघ के माध्यम से हुआ । अपने प्रभावी व्यक्तित्व और संघर्षशील छवि के कारण बहुत ही जल्द वे जनसंघ में लोकप्रिय हो गए । जनसंघ में उन्होंने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के नाते कुशलतापूर्वक कार्य किया, बाद में जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ, तो वे जनता पार्टी, महाराष्ट्र प्रदेश के महासचिव बनाए गए, तो 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आदेश पर जब देश के ऊपर आपातकाल थोपा गया और भारतीय लोकतंत्र पर आंच आने लगी तो प्रमोद महाजन ने आपातकाल के विरोध में हुए आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
बाद में दोहरी सदस्यता के सवाल पर जब जनता पार्टी में जनसंघ नेताओं पर दबाव बनाया गया कि वे पार्टी में रहते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध नहीं रख सकते, तो जनसंघ नेताओं ने साफतौर पर कहा कि हम आरएसएस से अपना नाता नहीं तोड़ सकते और उन्होंने जनता पार्टी से अलग होकर सन 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन होने पर उनमें शामिल हुआ।
भाजपा में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए संगठन को मजबूत बनाया । वे भाजपा के राष्ट्रीय सचिव बनाए गए । भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और लगभग 10 वर्षों तक भाजपा के All India महामंत्री के रूप में पार्टी को सर्वव्यापी बनाने में अथक परिश्रम किया। संगठन के विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने समाज के सभी वर्गों को पार्टी से जोड़ा । कटक से अटक (गुजरात) तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक अथक प्रवास करते हुए भाजपा को एक अखिल भारतीय पार्टी के रूप में पहचान बनाने में प्रमुख योगदान दिया । वे कार्यकर्ताओं के दुख-सुख में समान रूप से साथ होते थे । देशभर में आयोजित पार्टी की बैठकों, अभ्यास वर्गों, सम्मेलनों में जाकर वे कार्यकर्ताओ का उत्साह बढ़ाते थे, उनका मार्गदर्शन करते थे, उन्हें आगे बढ़ने के गुर सिखाते थे, चुनौतियों का मुकाबला करने की प्रेरणा देते थे। नई-नई योजना बनाना और फिर उसे अमली-जामा पहनाना, इस नाते वे देशभर में जाने जाते थे।
प्रमोद जी ने कुशल जन-प्रतिनिधि और प्रशासक के तौर पर भी काफी यश अर्जित किया। वे 1986, 1992, 1998, 2004 में राज्यसभा सांसद चुने गए।
उनकी काबिलियत का यह स्पष्ट उदाहरण है कि सन् 1996 में जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें केन्द्रीय रक्षा मंत्री का दायित्व सौंपा गया। 11वीं लोकसभा में सांसद निर्वाचित हुए। अटलजी ने प्रमोद जी को कई मंत्रालयों का दायित्व सौंपा । वे प्रमोद (P) महाजन (M) को PM कहते और वे उनके हनुमान थे !
वे केन्द्र में सूचना प्रसारण मंत्री, संसदीय कार्यमंत्री, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री और संचार मंत्री बनाये गए। उन्होंने देश में संचार क्रांति का सूत्रपात किया। उनके नेतृत्व में विश्वभर में तकनीकी रूप से भारत एक ताकत के रूप में उभरा ।
प्रमोद जी मीडिया जगत के पंसदीदा व्यक्तित्व थे। किसी घटना पर उनकी बाइट लेने के लिए पत्रकारों में होड़ मची रहती थी । इसका कारण था उनकी सटीक और सार्थक टिप्पणी। वे तरूण भारत में उपसंपादक भी रहे। समय-समय पर अखबारों में लेख लिखते थे। प्रमोद जी को 2006 में अपने छोटे भाई द्वारा ही गोली मार जाने पर और अस्पताल में जीवन-मौत के बीच संघर्ष करने के दौरान जिस तरह से देश के सभी समाचार-पत्रों और स्तंभकारों ने उन्हें याद किया, उनके व्यक्तित्व के बारे में लिखा, ऐसा एक सदी में किसी के एक के साथ होता है। उनको मीडिया जगत का अपार स्नेह मिला।
आज वे जीवित रहते, तो सचमुच में PM रहते ! वैसे भारतरत्न अटल जी उन्हें अपना PM (प्रमोद महाजन) कहते भी थे! जन्मदिवस पर उन्हें नमन और सादरांजलि।