फूल परी (लघु कथा )
फूल परी
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मलिका के पिता ने दूसरी शादी क्या की उसकी किस्मत ही फूट गयी ।
सौतेली माँ से उसकी एक बहन थी पर वो भी मलिका से सौतेला व्यवहार ही करती थी।
पिता अपने होकर भी पराए हो गए थे । बेचारी दिन भर काम करती ।
घर से कुछ दूर एक बगीचा था ।जिसके फूल कभी मुरझाते नहीं थे ।लोग कहते थे वहां परियाँ आती हैं।
मलिका खाली समय मिलने पर वही आ जाती और फूलों से बातें कर अपने दुख दु:ख को कम करती ।
मां तुमने मेरा नाम मलिका क्यों रखा ? मालिका , तो रानी जैसी होती है । मैं तो इस घर में दासी बन कर रह गयी हूँ यह कहकर वो आज बिलख- बिलख के रो रही थी ।
न मेरा कोई मित्र है न साथी ।
रात किसी तरह बीती सवेरे सवेरे सबके उठने से पहले आज वह अपने प्रिय बगीचे में आगयी पर फूलों को देख कर भी खुश न हो सकी ।वह उदास सी घास पे बैठ गयी ।
तभी एका एक वहां पर पेड़ पौधों में सरसराहट हुई ।
और फूल परी प्रकट हो गयी ।
मलिका ओ मलिका ! क्या हुआ तुम उदास क्यों हो।
सच्चे और अच्छे इंसान कभी उदास नही होते ।
मालिका ने पीछे मुड़ के देखा तो फूल परी खड़ी थी । फूलों के कपड़े ,फूलों के गहने फूलो का ताज । कितनी सुंदर कौन हो तुम ? मेरे रूप को देख कर भी तुम मुझे नही पहचान पायी।
मैं फूल परी हूँ ।
तुम क्यों उदास हो ? मुझे बताओ।
मैं तुम्हारे दुख को दूर कर दूंगी
मेरा कोई मित्र नहीं कोई साथी नही है । मां कब का छोड़ कर चली गई पिता ने दूसरी शादी करली मेरा कोई नहीं रहा ।कोई मुझे प्यार नहीं करता।
बस इतनी सी बात फूल परी बोली ।
तुम कुछ देर के लिए अपनी आंखें बंद करो ।
मलिका आंखे बंद करती है ।
फूल कुमारी फूलो की छड़ी छुआती है मलिका बिल्कुल मलिका की तरह सज जाती है । सिर पर न मुरझाने वाले फूलो का ताज था ।
फूल परी मलिका को सजा कर जा चुकी थी ।
मलिका की आंखे बंद थी ।भीनी सुगन्ध के साथ नगर का राजकुमार मलिका का हाथ थाम कर कहरहा था ।क्या तुम मेरी जीवन संगिनी बनोगी ?
मानो संगीत का हर स्वर मुखरित होगया था ।
©®मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”
*४-वाह वाह बहुत सुंदर लघुकथा है*
सुंदर लघु कथा .