मुक्तक/दोहा

एक मुक्तक

इत उत क्यों तू भटक रहा, जब अंतस पैठे ईश

खोज रहा तू मंदिर मंदिर, कण कण में जगदीश
मुझमें है वो, तुझमें है वो, कहाँ नहीं है ये बतलाओ
रोम रोम में वही बसा है, पग नख ते तन शीश
— राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।