मुक्तक/दोहा एक मुक्तक *राजकुमार कांदु 04/11/202128/11/2021 इत उत क्यों तू भटक रहा, जब अंतस पैठे ईश खोज रहा तू मंदिर मंदिर, कण कण में जगदीश मुझमें है वो, तुझमें है वो, कहाँ नहीं है ये बतलाओ रोम रोम में वही बसा है, पग नख ते तन शीश — राजकुमार कांदु