सामाजिक

आत्महत्याओं की ओर जा रहा आज का प्राणी बेहद चिंतनीय विषय

रोज़ाना सुबह-सुबह समस्त समाचार पत्रों के अधिकांश पृष्ठ आधुनिक दौर में बढ़ती हुई आत्महत्याओं की क्षुब्ध कर देने वाली घटनाओं से सटे पड़े होते हैं । सचमुच यह अत्यन्त गंभीर विषय है । इस पर मौजूदा समय में चिन्तन बेहद अत्यावश्यक है । परमात्मा ने हमें जीवन दिया है , जीने के लिए पर अफसोस लोग अपने अमूल्य जीवन को स्वयंमेव समाप्त करते चले जा रहे हैं । पहले-पहल अधिकतर युवा वर्ग आत्मघात करते थे परन्तु अब 7-8 वर्षीय बच्चे से लेकर अधेड़ आयु वर्ग के पुरूष-स्त्रियाँ अपनी जीवन लीला खत्म करने लगे हैं । कारण चाहे कुछ भी हो पर आत्महत्या को कदाचित उचित नहीं ठहराया जा सकता । हमें अपने आपको मारने का अधिकार भला किसने दिया ?
   अब एक और ही प्रवृत्ति ऐसे लोगों में घर कर गई है , वह है फेसबुक पर लाइव होकर आत्मघात करना । ये लोग मौत को गले लगाना एक खेल सा समझने लगे हैं । यह प्रवृत्ति उनके मन में कैसे आई । मोबाइल, नशा , बेरोज़गारी , अवैध सम्बन्ध, असहनशीलता, अत्यधिक क्रोध की भावना , जमीन-जायदाद का आपसी झगड़ा व भारी-भरकम खर्च लेकर विलासितापूर्ण जीवन जीने की चाहत मन में रखना ।
नि:सन्देह किसी भी व्यक्ति का इस दुनिया को छोड़कर जाने को मन नहीं करता , तो फिर क्यों ऐसी शोचनीय विचार धारा
मन में पनप रही है । अपने आपको मार कर यहाँ से चले जाना बहादुरी कतई नहीं कही जा सकती यह तो सरासर कायरतापूर्ण कदम है । संसार छोड़कर जाने वाले तो चले जाते हैं पर अपने पीछे छोड़ जाते हैं रोते-विलखते माँ-बाप और बच्चों को अकेले ही । आत्मघात प्राणी को कभी भी मोक्ष नहीं मिलता । उसकी आत्मा भटकती ही रहती है ।
    विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर कोई व्यक्ति एक ही विचार को लगातार 40 दिन तक सोचते रहे तो वह तनावग्रस्त हो जाता है । बस यही तनाव उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है । नशा भी किसी भी प्राणी की मौत का प्रमुख कारण बन रहा है । नशे के इंजेक्शन की ओवरडोज से युवा लड़के-लड़कियाँ कालग्रस्त हो रहीं हैं । मोबाइल ने भी हमारे समाज को पथ भ्रष्ट कर दिया है । समूचे संसार के ज्ञान का भंडार भरा हुआ है मोबाइल में । घातक हथियारों से लैस लाइव गेम्स का प्रचलन भी समस्त विश्व पर भारी पड़ रहा है । पब्जी गेम्स से अनेक बच्चे मौत के घेरे में फंसते गए। ऐसी भी घटनाएं हुईं हैं जब कभी माँ-बाप ने बच्चों को मोबाइल अधिक चलाने की अपेक्षा पढ़ने को कहा या उनसे फोन छीन लिया तो झट गुस्साए वे फंदा गले में डाल आत्महत्या करते जा रहे हैं । इस समस्या पर सोच विचार कर अंकुश लगाया जाए।
     वैवाहिक जीवन में बिखराव भी आत्महत्याओं की जड़ बनता जा रहा है । किसी न किसी कारण कुछेक दिनों में तलाक तक नौबत पहुँच रही है । दहेज को इसका प्रमुख कारण तो माना जा सकता है पर विवाहेत्तर सम्बन्धों से भी लोग अपने आपको व दूसरे को मारने पर तुले हैं । सेल्फी लेते मौत को गले लगाना अब इस आधुनिक युग में एक नया ही ट्रेंड बनता जा रहा है जिसका ज्वलंत उदाहरण कुछेक माह पूर्व आयशा लड़की का अपने ससुराल विशेषत: अपने पति से दुखी होकर नदी में छलांग लगाकर अपनी इहलीला खत्म करने से पूर्व भावुक वीडियो ने सभी को विचलित कर दिया । इस दृश्य को देखकर प्रस्तुत पंक्तियाँ लिखने वाला लेखक बहुत रोया तो लड़की के घर वालों के दु:ख का अंदाजा लगाना स्वाभाविक ही है । इस प्रवृत्ति से तो आत्महत्याओं को प्रोत्साहन ही तो मिलेगा । लोन लेकर वापस न कर पाना , जमीन-जायदाद का बिक जाना बहुतेरे कारण इस समस्याओ को बढ़ावा देते हैं । इससे भी अलग इन्सान जब अलग बैठता है तो उसे अकेलेपन से जुझना पड़ता है । उसके मन में नकारात्मक विचार उसे आत्महत्या करने हेतु उत्सुकाते है । उसे यह दुनिया खाली खाली लगने लगती है ।
        इसके अतिरिक्त पारिवारिक झगड़े, गंभीर बीमारियाँ, गरीबी , बैंक लोन एवं युवाओं का परीक्षाओं में असफल होना एवं पढ़ने के लिए विदेशी पढ़ाई का खर्च अथवा वीजा न मिलना इत्यादि भी इस गंभीरतम समस्या का मूल कारण है ।
   2019 वें वर्ष में समूचे भारत में आयु वर्ग के हिसाब से एक हजार प्रति आंकड़े को लेते हुए 18 वर्ष से नीचे 9.61 , 18 से 30 वर्ष तक के युवा वर्ग 48.77 , 30 से 45 वर्ष आयु वर्ग के युवा 44.29 , 45 से 60 वर्षीय वाले लोग 25.44 व अंत में 60 से ऊपर वाले लोगों में से 11.01 ने आत्महत्याओ का आंकड़ा है । इस हिसाब से हमारे देश में
आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 2018 की अपेक्षाकृत 2019 में 3.4 फीसदी बढ़ा है । इससे आप खुद ब खुद यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि 2020 एवं 2021 अप्रैल तक क्या स्थिति होगी। गत वर्ष से जारी कोरोना महामारी से भी इस समस्या में बेतहाशा बढौतरी देखने को मिली । यह बेहद भयावह तस्वीर थी ।
        आत्महत्याओ का दौर यूँ तो चलता रहेगा । हाँ, इसे कम करने के लिए सकारात्मक सोच रखनी आवश्यक है तथा समाज, माँ-बाप, अध्यापक व समाज सेवी संगठनों से इस विषय पर उचित सलाह, मनोचिकित्सक डॉक्टरों से सलाह मशविरा जरूरी है । बेरोजगारी, परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त न कर पाना , बारम्बार फेल होना , सामाजिक रुतवा, गरीबी, प्रेम संबंध, जायदाद झगड़ा इत्यादि आत्महत्या के अनेक कारण होते हैं, जिन्हें रोका जा सकता है । हमारे देश में आत्महत्या बचाव के प्रोग्राम चलाए जाने की बेहद आवश्यकता है । मानसिक बीमारियों जैसे डिप्रेशन, ड्रग का प्रयोग, साइको, बेचैनी आदि भी आत्महत्या के बेहद बड़े फैक्टर्स होते हैं
                   जीवन तो जीवन है खुल कर जीओ
                   कायरतापूर्ण कृत्य जी कर न जीओ
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333