कहानी

जीवन में सुख कहाँ

नीरज-नीलम को इस छोटे से कस्बे में आए करीब एकाध साल ही हुआ था । यहाँ एक शिवालय में एक समाज सेवी धार्मिक संगठन ने नीरज को पुजारी रख लिया। पाठ-पूजा से पंडित नीरज का गुजारा बढ़िया चलने लगा । सोमवार शिव भगवान का विशेष दिन होता है और साथ ही महीने में संक्रान्ति, बस […]

कहानी

दहेज प्रथा

अन्तरकाॅलेज वाद-विवाद प्रतियोगिता में अन्य काॅलेज के वक्ताओं के बाद बारी आई हमारे ही काॅलेज के मेधावी छात्र जीवन की । उसने भी ” दहेज प्रथा ” शीर्षक पर अपने विचार व्यक्त किए। उसने कहा, ” इसमें कोई संदेह नहीं कि दहेज माँगना और देना निन्दनीय काम है । जब वर और कन्या दोनों की […]

लघुकथा

इच्छाओं का अंत

कुछ ही दिनों में महेन्द्र फर्श से अर्श पर पहुँच गया। इसका कारण तारी के लड़के सुरिंदर के साथ अवैध गतिविधियों में संलिप्त होना था । पहले महेंद्र और सुरिंदर कार रिपेयरिंग का काम करते थे। दोनों का काम दिन-ब-दिन बढ़ने लगा। लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें चिट्टे के नशे की लत लग गई। उनका काम-धन्धा […]

कहानी

आधी अधूरी कहानी

जैसे चाँदनी की सुन्दरता चाँद से और अमावस पर घनघोर अंधकार की अपनी छटा होती है ।ठीक ऐसे ही चकोर को मात्र बारिश की एक ही बूँद अमृत समान लगती है। यह भी शाश्वत सत्य है कि सृष्टि का अस्तित्व नर और नारी से ही संभव है । सृष्टि के निर्माण हेतु परमेश्वर ने उजाला-अंधेरा […]

कविता

आओ लौट चले अपने गाँव की ओर

आ अब लौट चलें अपने गांव की ओर जहाँ है अभी मासूमियत नहीं है ठगा ठौरी धोखेबाजी अपनी मिट्टी अपने लोग है उनमें परस्पर अपनापन गाँव के बीच बहती नदी नदी में मदमस्त हो कूदना प्रकृति का भरपूर प्यार माँ का मिलता दुलार स्कूल जाते राह में रूकना मास्टर जी की लम्बी छड़ी मुर्गा बनने […]

लघुकथा

माँ की कृपा

अंकित बड़ी मुश्किल से पाँच छ: वर्ष का होगा । दो बहनों का भाई। अभी बचपन में ही था । पढाई से बेफ्रिक बस दिन भर मौज- मस्ती में मस्त। दादा-दादी का राज दुलारा और बहनों का भी बेहद प्यारा । बुआ कविता तो उसे अपनी जान से भी अधिक प्यार करती थी । निस्संदेह […]

सामाजिक

उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी जिंदगी महत्वहीन क्यों ?

विद्यार्थी किसी समाज अथवा देश की रीढ़ हुआ करते हैं । इसलिए उनका विकास अथवा पतन समूचे देश का विकास अथवा पतन माना जाता है इसलिए तुम्हें  पढ़ने -लिखने में विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि तुम अनपढ़ रह गए तो हमारा देश भारत कमजोर हो जाएगा । आज समाज में शिक्षित युवाओं की बेहद आवश्यकता […]

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

रेत के महलों में रहने वालो घमंड काहे का

समूचा संसार भौतिकतावाद में पूर्णतः संलिप्त है । बिन समझे एक दूसरों से आगे निकल जाने की एक अजीब सी होड़ लगी है । प्रतियोगिता महज एक नाम है । प्रतियोगिता में भी ईष्या ने घिनौना रुप अख्तियार कर लिया है । अपना लाभ हो न हो पर दूसरों की उन्नति उन्हें फूटी कौड़ी भी […]

कविता

हे धरा कृपा करो

धधक धधक रही धरा अब झुलस रहे सभी प्राणी जीव देखा नहीं ऐसा मंजर कभी हे धरा ! हम पर कृपा करो क्यों तुम रूठी हो वसुधा सूख रही है प्रकृति यहाँ चारों ओर गर्मी का कहर धरा बंजर है बन रही कांटे ही कांटे उग रहे छाया का नाम कहां धूप अंगारे बरसा रही […]

कविता

निराश क्यों हो तुम ?

निराश क्यों हो तुम ? क्या हलचल है हृदय में खुद से ही युद्ध करके हार बैठे हो क्या तुम ? क्या है हार क्या जीत सर्वनाश है इसका मीत रक्तरंजित हो रही धरा न कोई जीतता न कोई हारता निराश क्यों हो तुम ? सैनिकों की लाशों का ढेर मृत मां से लिपटे नौनिहाल […]