कहानी

जीवन में सुख कहाँ

नीरज-नीलम को इस छोटे से कस्बे में आए करीब एकाध साल ही हुआ था । यहाँ एक शिवालय में एक समाज सेवी धार्मिक संगठन ने नीरज को पुजारी रख लिया। पाठ-पूजा से पंडित नीरज का गुजारा बढ़िया चलने लगा । सोमवार शिव भगवान का विशेष दिन होता है और साथ ही महीने में संक्रान्ति, बस ये विशेष दिन होते थे जिस दिन पंडित जी को अच्छी-खासी कमाई हो जाती थी । कविता, रेणु व अजय ये तीन बच्चे बचपन लांघ अपनी किशोरावस्था में थे । इनकी पढ़ाई-लिखाई, कपड़ा-लत्ता इत्यादि पर खर्च बढ़ने लगा । मंदिर कमेटी तो महज एक हज़ार रूपया महीना ही वेतन के रूप में पंडित जी को देती तो इससे गुजारा बहुत ही मुश्किल से होने लगा ।
ज्योतिष विद्या का पर्याप्त ज्ञान होने के कारण कारोबारी, प्रेम विवाह करवाने के इच्छुक, कुछ किए का उपचार करने तथा विदेश जाने के इच्छुक युवा उसके पास आने लगे । किसी का काम हो जा न हो, उसका अपना कारोबार चल निकला । हमारे कस्बे के पास एक नामी-गिरामी सरपंच का नीरज पंडित के पास उठना बैठना हो गया क्योंकि पंडित जी के पाठ करने से सरपंच का बेटा जल्द ही कनाडा चला गया । सरपंच ने कहा, “पंडित जी आपकी कृतज्ञता कभी भी नहीं भूल सकता ।” मेरा बेटा तीसरी कोशिश में आपकी कृपा से बाहर जाने में सफल हुआ है ।
पंडित जी स्पष्टवादी होने के कारण सरपंच को बोला,”सब प्रभु की इच्छा है। हम तो पूजा-पाठ ही कर सकते हैं । बाकी भविष्य तो अजन्मा है ।” अब कस्बे में पंडित जी का नाम हो गया । पर यहीं से नीरज पंडित के दुर्दिन शुरू हो गए। सरपंच ने पंडित को चिट्टे पर लगा दिया । पंडितानी ने अपने बच्चों की कसम दिलाई कि वह नशा करना छोड़ दे अन्यथा वह बच्चों सहित आत्महत्या कर लेगी । कहते हैं कि जब किसी को चिट्टे की लत लग जाए तो वह उसके साथ ही जाती है । ठीक ऐसा ही पंडित के साथ हुआ। अब तो वह इंजेक्शन पर आ गया और एक दिन ओवरडोज के कारण उसकी मौत हो गई। पंडितानी पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा।
 नीलम को पंडिताई करने के लिए मजबूर होना पड़ा ताकि घर का गुजारा चल सके । वह युवा थी तो खाली पड़ी जमीन व विधवा की ओर हर कोई लालची आंखों से ही देखता है । पर नीलम ने स्त्री धर्म निभाया । अपनी दोनों बेटियों के हाथ पीले किए । यहाँ भी बदकिस्मती ने नीलम का पीछा नहीं छोड़ा। एक शाम कविता अपने पति विवेक व बच्चे कुदरत के साथ अपनी माँ से मिलने आ रहे थे कि मैहना थाने के पास उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया और तीनों दुर्घटनास्थल पर ही मर गए। ऐसे में नीलम पर एक और कठोर वज्रपात हुआ। उसका जीना मुहाल हो गया। अकेली बैठी सोचती रहती कि जिंदगी भी एक अजीब खेल है । इसमें सुख कहाँ ? खुद से बातें करती रहती । अजय उसका आज्ञाकारी पुत्र उसे बहुत समझाता। कहता माँ यह जीवन-मरण परमात्मा के हाथ है । हमारा जीवन धूप-छाँव की तरह दुख-सुख समान है । इसमें दुख ज्यादा हैं और सुख कम व क्षणिक ही होते हैं । अजय हमेशा माँ का साया बना रहता और अन्तत: आईलटस करके बैंक से लोन लेकर स्टडीज बेस पर कनाडा चला गया । वहाँ उसने पढ़ाई पूरी की और चार साल में बैंक का लोन चुकाया और अपनी माँ को भी वहीं अपने पास बुला लिया । अब माँ-बेटा पहले-पहल संघर्षमय दिन व्यतीत कर सुखमय जीवन गुजारने लगे । अजय ने वहीं साथ कार्यरत सहकर्मी आशा से शादी कर ली । नीलम को बहू संस्कारी मिली । पर विवेक ने माँ को फिर कहा कि ,” माँ ! यह जीवन संघर्षमय है। इसमें सुख-दुख आते ही रहते हैं । अत: भयभीत न होकर तनकर जीओ जीवन। “
माँ ने कहा “अब तूं माँ से बड़ा हो गया लगता है।” इस बात पर तीनों मुस्कराने लगे ।
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333