कहानी

बहारें फिर भी आएंगी

 घर से मंगवाई रोटी को देरी से लाने के कारण चिरंजी लाल ने सुरजू को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया । दूर से मैं भी यह दृश्‍य देख रहा था । सुरजू की आंखों में आसूं आ गये पर उसने इस बात का जरा भी विरोध नहीं किया; विरोध करके वह करता भी क्‍या ? एक वक्‍त था जब सुरजू का बाप नंद लाल शैलर का मालिक हुआ करता था । वक्‍त ने ऐसा पलटा खाया कि नंद लाल अर्श से फर्श पर आ गिरा । नामी और प्रख्‍यात नंद लाल अब मात्र नंदू बन कर रह गया ।
     सुरजू के बडे भाई कृष्‍णा ने जब बाजार में कुलचे–चने बेचने शुरु कर दिये तो नंदलाल के भाईयों मे इस बात का बहुत बुरा मनाया । वह कहने लगे कि कृष्‍णा कोई आरे काम करे, कुलचे –चने बेचने से हमारी नाक कटती है । तब अपने भाईयों की बात सुनकर नंदलाल हंस दिया और उसने अपने भाईयों को साफ शब्‍दों में कह दिया कि कृष्‍णा यही काम करेगा ।
    आज नंद लाल जब बाबा गेंदी राम जी के डेरे पर माथा टेकने के बाद पिरोजवाल अपने किराना की दुकान पर पैदल ही जा रहा था तो कडाके की ठंड में उसकी इस दयनीय दशा देखकर मेरा मन रो दिया और उसके अतीत से सम्‍बन्धित सभी बातें एक एक करके मेरे जेहन में चलचित्र की तरह घुम गईं । नंदलाल और मैने इकट्ठे ही मैट्रिक की परीक्षा पास की और दसवीं पास करने के तुरंत बाद नंद लाल अपने भाईयों के साथ कारोबार में सम्मिलित हो गया और मैंने कालेज में दाखिला ले लिया ।
  नंदलाल अथक परिश्रम करते हुए कारोबार को शिखर पर ले गया । शीघ्र ही नंदलाल का परिवार भी अति प्रतिष्ठित धनी परिवारों में गिना जाने लगा । यह सब नंद लाल की नेक नीयत व साफ दिल के कारण संभव हुआ । नंद लाल नगर की सभी संस्‍थाओं को खुले दिल से दान देता ।
  नंद लाल का विवाह मोगा निवासी किरण से हो गया । सुरजू और कृष्‍णा इनके दो सुपुत्र हुए । नंद लाल अपने पुत्रों को उच्‍च शिक्षा दिलवाना चाहता था । अपने व्‍यक्तितव की कमियों की भरपाई वह अपने बेटों के माध्‍यम से करना चाहता था । उसकी तीव्र इच्‍छा थी कि वह सुरजू एक अच्‍छा वक्‍ता बने तो कृष्‍णा कला के क्षेत्र में अपना नाम चमकाये । उसे बांसुरी बजाना अच्‍छा लगता तो भंगड़े को तो वह हद की जनून से भी बढ़ कर प्‍यार करता ।
    सुरजू व कृष्‍णा पढ़ाई में नहीं चल पाये । वह उन दोनों को अपने साथ ही काम पर ले जाने लगा । अब कारोबार में उत्‍तरोत्‍तर वृद्धि होती चली गई । नंद लाल को अपनी पत्‍नी किरण से भी बराबर सहयोग मिलता रहा । वह नगर के हरेक मंदिर में जाती; धार्मिक समारोह में बढ़- चढ़ कर भाग लेती । गोशाला के निमार्ण कार्य में भी इस परिवार ने अपना अच्‍छा -खासा योगदान दिया । झूठी शोहरत से कोसों दूर था, नन्‍द लाल का परिवार ।
 समय अपनी निर्बाध गति से आगे बढ़ रहा था । सब-कुछ ठीक-ठाक चल रहा था और एकाएक नंदलाल की जिंदगी में ऐसा भूकंप आया कि निर्दयी थपेड़ों से वह संभल ना सका । नन्‍द लाल के भाईयों ने उसे कारोबार से बाहर निकाल दिया और हिस्‍से के नाम से उसे फूटी कौडी भी नहीं दी । कर्मशील व फल की इच्‍छा न रखने वाले दृढ़ निश्‍चयी नंद लाल को एक बारगी तो शक्तिशाली बिजलीनुमा झटका लगा ।
 उधर सेठ चिरंजी लाल ने सुरजू पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा दिया । बेटे की जमानत के लिए नन्‍द लाल के पास धन भी नहीं था । जैसे-तैसे, इधर-उधर से जुगाड़ कर किरण ने सुरजू को जमानत हेतु धन का प्रबन्‍ध कर ‍लि‍या । नि:संदेह सुरजू जेल से बाहर आ गया परंतु उस पर लगे निराधार आरोप को सहन करना नंदलाल जैसे आत्‍म सम्‍मानीय व्‍यक्ति के लिए कोई आसान काम नहीं था । किरण ने नंदलाल को बहुत समझाया और कहा कि देखिए भगवान कृष्‍ण पर भी मणि चुराने का झूठा आरोप लगा था । हम तो फिर साधारण – जन हैं । आप धैर्य रखें । पर सदैव प्रसन्‍नचित रहने वाला नंदलाल अब खिन्‍न व क्रोधित रहने लगा । बात-बात पर हरेक से वह झगड़ने लगा और आज सिद्धांतों के विपरीत बहुत ही घातक कदम उठाने का मन बना लिया ।
 वह कांवां के पत्‍तन सतलुज दरिया की ओर चला जा रहा था । शाम ढलते उसने कौएं के झुण्‍ड़ को देखा जिन्‍हें अक्‍सर ही वह शैलर पर जाते हुए देखता; सूर्योदय होते ही ये कौएं बाई-पास पर स्थित सफेदों के पेड़ों से निकल अपनी दिनचर्या पर निकल पड़ते और संध्‍या होने पर पुन: अपने-अपने घोंसलों में वापस लौट आते । कौएं की इस दिनचर्या से नंदलाल अत्‍याधिक प्रभावित हुआ करता था । अपने ही विचारों से संघर्ष करता हुआ वह चलता ही चला जा रहा था । मरना कोई आसान नहीं; अत: इसके भी उसने कई रास्‍ते सोचे । अन्‍तत: बस यही रास्‍ता उसे आसान लगा तो वह पागलों की भांति बेतहाशा भागा चला जा रहा था । अभी वह कमाल के गॉंव ही पंहुचा था कि अनायास ही उसे आवाज़ सुनाई दी ।
“ठहरो”
“कहां भागे जा रहे हो ॽ
नंदलाल आवाज़ सुनकर रूक गया ।
उसने पलटकर पूछा, “तुम कौनॽ”
तभी आवाज़ आई; मैं जो कुछ भी हूं, तुम्‍हारे ही सामने हूं ।
क्‍या मैं तुझे दिखाई नहीं दे रहा ?
अन्‍धेरा हो चुका था अत: नंदलाल को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । वह असमंजस में था ।
 तो, सुनो मैं चाहे तुम्‍हें दिखाई नहीं दे रहा किन्‍तु मेरी कहानी भी तेरी ही कहानी की तरह है । मैं भी कभी तेरी तरह लम्‍बा – चौड़ा शक्तिशाली हुआ करता था । लोगों को हंसते–रोते देखता ।
लोग मेरे पास आते। मेरी पूजा करते । मैंने भी जिंदगी में तेरी तरह काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं । नि:सन्‍देह अब में ठूंठ बन चूका हूं किन्‍तु मेरा अस्तित्‍व अभी भी कायम है । कल ही की तो बात है मेरी इन शाखाओं पर कपोलें फूंटीं और एक कोयल इस ओर आकर्षित होकर अपना मधुर संगीत सुनाने इन पर आ बैठी; तब मेरी प्रसन्‍नता का कोई ठिकाना नहीं रहा ।
मित्रवर, अभी तेरी उम्र ही क्‍या है ॽ जिंदगी से अभी उक्‍ता गये । सुनो, अगर मर भी गये तो फिर तैयार रहना एक और नया जीवन लेकर आवागमन के चक्‍कर में फंसने के लिए । दोस्‍त आपने किसी विद्धान का लिखा, पढ़ा भी होगा कि हम सभी ने अपनी-अपनी पदवियों /कर्मों में रहकर ही हमें जीना होगा । अब मुझे सुरजू के चेहरे पर पड़े तमाचे की गुंज का आभास हो गया । यह सब दुनियां का दस्‍तूर है । मित्र, जा पीछे मुड़ जा, मेरी बात मान तेरे जीवन में पतझड़ के बाद बहारें अवश्‍य आएंगी विधि का लेख व कर्मों की गति मानकर नंदू वापस लौट पड़ा पुन: नन्‍द लाल की पदवी प्राप्त करने ।
— वीरेन्‍द्र शर्मा वात्स्यायन

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333