कविता

अर्ध चमकता चाँद 

अमृत बेला में चमकता अर्ध चाँद
अपने खोए हुए अस्तित्व को
पाने के लिए  हो रहा संघर्षशील
अंधेरा उजाले की ओर अग्रसर
लैंपपोस्ट अभी जले हुए
पेड़ खमोश खड़े हुए
पक्षियों का मधुरिम कलोहल
प्रभात में सूर्योदय होने को आतुर
शिशिर ऋतु में सुबह का कोहरा
जीवन रथ को रोकने में प्रयासरत
सूर्य की स्वर्णिम रश्मियां रथ पर सवार
मानवता को दें रहीं उन्मुक्त होकर संदेश
आगे बढ़कर देखो अर्ध चमकता चाँद
ऊँचे टावर के एक छोर झांककर कहता
ये मेरे साथ गगन में चमकते हुए तारागण
जोर-शोर से दे रहे हैं दुहाई समस्त विश्व को
परस्पर सौहार्दपूर्ण ढंग से जिओ जीवन
टूट कर बिखर जाने पर मिलेगा क्या
तुम्हें अपना खोया हुआ आत्म सम्मान
आओ करें हम  नये युग का निर्माण
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333