इस दीवाली में
सज गई बल्वों की रोशनी
आज की इस दीवाली में
भूल गये |मिट्टी के दीपक
जो सजते थे कभी दीवाली में
मिट्टी की दीये रूई की बाती
शुभ शुभ लगता था थाली में
घर घर दरवाजे पर जलती थी
जगमग जगमग दीवाली में
थाली में सजाकर अम्मा दादी
जलाती थी घर के द्वारों में
पाँच दीये की सजाती थी कतारें
गंगा मईया के चौबारे पे
घर के कुलदेवी के सामने
और गाँव के सब मंदिर में
गॉव की सरिता में जलते थे
पाँच दीये हर दीवाली में
मशाल पट्टचर दौड़ लगाते
हर गली और गलियारों में
उकेल चुकेल का नारा लगाता
गाँव के बच्चे चौवारों में
कहीं फूटता नहीं था पटाखा
नहीं जलने की कोई खतरा
पर अब के दीवाली में होता
रोज प्रदुषण का जग में कचरा
आओ साफ सफाई कर हम
दीवाली मनायें जहर रहित
ना चलायेगें कोई पटाखा
सरसों के दीये धुआँ विहीन
— उदय किशोर साह